Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [द्विदिविहत्ती ३ तसपज०-पंचमण-पंचवचि०-इत्थि-पुरिस०-चक्खु०-सण्णि त्ति ।
६६४३. वेउब्विय० बावीसपयडी० ज० खेत्त, अज० अणुक्क भंगो । सम्मत्तसम्मामि० ज० अज० अणुक्क० भंगो । अणंताणु०चउक्क० ज० अह चो०, अज. अणुक्कभंगो। ओरालिय०-णवुस० ओघं । णवरि अणंताणु०चउक्क० ज० तिरिक्खोघं ।
६४४. विहंग० छब्बीसं पयडी० ज० खेत्तभंगो, अज० अणुक्क भंगो । सम्मत्त०-सम्मामि० अणुक्कभंगो। आभिणि-सुद०-ओहि०-अोहिदंस-सम्मादिवेदय० सव्वपय० जह• पंचिंदियभंगो । णवरि सम्मामि० सम्मत्तभंगो । अज० अणुक०भंगो । संजदासंजद० सव्वपयडी० जह० खेत्तभंगो। अजह० अणुक्कभंगो ।
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इसी प्रकार त्रस, सपर्याप्त, पांचों मनोयोगी, पांचों वचनयोगी, स्त्रीवेदवाले, पुरुषवेदवाले, चक्षुदर्शनवाले और संज्ञी जीवोंके जानना चाहिये।
विशेषार्थ-पंचेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय पर्याप्तकोंमें तेईस प्रकृतियोंकी जघन्य स्थिति क्षपणाके समय प्राप्त होती है, इसलिये इनका स्पर्श क्षेत्रके समान प्राप्त होता है। यही कारण है कि यहां स्पर्शको क्षेत्र के समान कहा है। अजघन्य स्थिति सर्वत्र सम्भव है अतः इनका स्पर्श अनुत्कृष्टके समान बतलाया है। सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य और अजघन्य स्थितिवालोंका जो ओघ स्पर्श बतलाया है वह उक्त मार्गणाओंमें भी सम्भव है, अतः इनके स्पर्शको ओघके समान कहा है। उक्त मार्गणाओं में अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी जघन्य स्थितिवालोंमें देवोंकी प्रमुखता है अतः इनके स्पर्शको सामान्य देवोके समान बतलाया है। तथा अजघन्य स्थितिवालोंका स्पर्श अनुत्कृष्टके समान बन जाता है, अतः इसे अनुत्कृष्टके समान बतलाया है । त्रसकायिक आदि मार्गणोंमें उक्त व्यवस्था बन जाती है, अतः उनके कथनको उक्त प्रमाण कहा है।
६६४३. वैक्रियिककाययोगियोंमें बाईस प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका स्पर्श क्षेत्रके समान है। तथा अजघन्य स्थितिका भंग अनुत्कृष्टके समान है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य और अजघन्य स्थितिविभक्तिका भंग अनुत्कृष्टके समान है । अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने बसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम
आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। तथा अजघन्य स्थितिविभक्तिका भंग अनुत्कृष्टके समान है औदारिककाययोगी और नपुसकवेदवालोंमें ओघके समान है। किन्तु इतनी विशेषता है कि अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी जघन्य स्थितिविभक्तिवा जीवोंका स्पर्श सामान्य तियचोंके समान है।
६६४४. विभंगज्ञानियोंमें छब्बीस प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका स्पर्श क्षेत्रके समान है। तथा अजघन्य स्थितिविभक्तिका भंग अनुत्कृष्टके समान है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग अनुत्कृष्टके समान है। आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, अवधिदर्शनवाले, सम्यग्दृष्टि और वेदकसम्यग्दृष्टि जीवोंमें सब प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका स्पर्श पंचेन्द्रियों के समान है। किन्तु इतनी विशेषता है कि सम्यग्मिथ्यात्वका भंग सम्यक्त्वके समान है। तथा अजघन्य स्थितिविभक्तिका भंग अनुत्कृष्टके समान है। संयतासंयतोंमें सब प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका स्पर्श क्षेत्रके समान है। तथा अजघन्य स्थितिविभक्तिका भंग अनुत्कृष्टके समान है।
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