Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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. ३७६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[द्विदिविहत्ती ३ .. ६३१, वेउव्विय० मिच्छ०-सोलसक०-पंचणोक० उक्क० अणुक्क० अहतेरह चोदस० देसणा । एवं हस्स-रदि०। इत्थि०-पुरिस० उक्क० अह-बारह देसूणा। अथवा बारह चोदस० पत्थि । अणक्क० अह-तेरह चो० देसणा । सम्मत्त-सम्मामि उक्क० अह चो०, अणुक्क० अह-तेरह चो० । वेउब्वियमिस्स० खेत्तभंगो। एवमाहार०आहारमिस्स०-अवगद०-अकसा०-मणपज्ज-संजद०-सामाइय-छेदो-परिहार०-मुहुम०जहाक्वादसंजदे त्ति । बतलाया है वह पंचेन्द्रिय आदि पूर्वोक्त चार मार्गणाओंकी प्रमुखतासे ही बतलाया है, इसलिये यहां उक्त मार्गणाओंमें मिथ्यात्व आदिकी उत्कृष्ट स्थितिवालोंका स्पर्श ओघके समान कहा । उक्त मार्गणाओंका विहारवत्स्वस्थान आदिकी अपेक्षा स्पर्श कुछ कम आठ बटे चौदह भाग तथा मारणान्तिक समुद्धात और उपपादकी अपेक्षा स्पर्श सब लोक है, अतः इनमें अनुत्कृष्ट स्थितिवालोंका स्पर्श उक्त प्रमाण कहा । स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी उत्कृष्ट स्थितिवालोंका विहार आदिकी अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह भाग प्रमाण और मारणान्तिक समुद्घातकी अपेक्षा कुछ कम बारह बटे चौदह भाग प्रमाण स्पर्श प्राप्त होता है, इसलिये इनकी उत्कृष्ट स्थितिवालोंका उक्त प्रमाण स्पर्श बतलाया है। तथा इन दोनों प्रकृतियोंकी अनुत्कृष्ट स्थितिवालोंका कुछ कम आठ बटे चौदह भाग प्रमाण स्पर्श विहारादिककी अपेक्षा बतलाया है और सब लोक स्पर्श मारणान्तिक तथा उपपाद पदकी अपेक्षा बतलाया है। तथा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिवालोंका कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण स्पर्श विहार आदिकी अपेक्षा बतलाया है
और इन दोनों प्रकृतियोंकी अनुत्कृष्ट स्थितिवालोंका लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण स्पर्श वर्तमान काल आदिकी अपेक्षा तथा सब लोक स्पर्श मारणान्तिक समुद्घात और उपपाद पदकी अपेक्षा बतलाया है । चक्षुदर्शन आदि कुछ और मार्गणाएं हैं जिनमें यह व्यवस्था बन जाती है, अतः उनके कथनको ओघके समान कहा है।
६३१: वैक्रियिककाययोगियोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और पांच नोकषायोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने त्रस नालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ और कुछ कम तेरह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। इसी प्रकार हास्य और रति नोकषायकी अपेक्षा जानना चाहिये । स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने त्रस नालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ और कुछ कम बारह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। अथवा त्रस नालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम बारह भागप्रमाण स्पर्श नहीं है। तथा अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्ति वाले जीवोंने त्रस नालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ और कुछ कम तेरह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने त्रस नालीके चौदह भागोंमें से कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। तथा अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने त्रस नालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ और कुछ कम तेरह भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। वैक्रियिकमिश्रकाययोगियोंमें स्पर्श क्षेत्रके समान है। इसी प्रकार आहारककाययोगी, आहारकमिश्रकाययोगी, अपगतवेदवाले, अकषायी, मनःपर्ययज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत, परिहार विशुद्धिसंयत, सूक्ष्मसांपरायिकसंयत और यथाख्यातसंयत जीवोंके जानना चाहिये ।
विशेषार्थ-वैक्रियिककाययोगका स्पर्श कुछ कम आठ बटे चौदह भाग और कुछ कम तेरह बटे चौदह भाग है। वही यहां मिथ्यात्व आदि २६ प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिवालोंके प्राप्त
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