Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२] हिदिविहतीए उत्तरपयडिष्टिदिअंतरं
३४३ चउक० ज० ज० अंतोमु०, उक्क० सगहिदी देसूणा । अज० ज० अंतोमु०, उक्क० वे छावहिसागरो० देसूणाणि । एवं पुरिस०-चक्खु०-सण्णि त्ति ।
६५६८. कायाणुवादेण पंचकाय० एइंदियभंगो । णवरि सगसगुक्कस्सहिदी देसूणा । पंचमण०-पंचवचि० मिच्छत्त-सोलसक०-णवणोक० ज० अज० गत्थि अंतरं । सम्मत्त० सम्मामि० ज० णत्थि अंतरं । अज० ज० एगस०, उक्क० अंतोमु० । कायजोगि०-ओरालि.-वेउब्धिय० मणजोगिभंगो। ओरालियमिस्स० सुहुमेइंदियअपजत्तभंगो। णवरि सत्तणोक० जह० णत्थि अंतरं। अज० जहण्णुक० एगसमओ। वेउव्वियमिस्स० मिच्छत्त-सम्पत्त-सम्मामि०-सोलसक०-भय-दुगुंछ. ज. अज० णत्थि अंतरं । सत्तणोक० ज० णत्थि अंतरं । अज० जहण्णुक० एगस० । तथा दोनोंका उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम अपनी स्थितिप्रमाण है। अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी जघन्य स्थितिका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम अपनी स्थितिप्रमाण है। तथा अजघन्य स्थितिका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम दो छयासठ सागर है। इसी प्रकार पुरुषवेदवाले, चक्षुदर्शनवाले और संज्ञी जीवोंके जानना चाहिये।
विशेषार्थ-पंचेन्द्रिय आदि चार मार्गणाओंमें दर्शनमोहनीय और चारित्रमोहनीयकी क्षपणाके समय मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकाषायोंकी जघन्य स्थिति पाई जाती है, अतः इनके उक्त प्रकृतियोंकी जघन्य और अजघन्य स्थितिका अन्तरकाल नहीं कहा। तथा इनके कृतकृत्यवेदकके अन्तिम समय में सम्यक्त्वकी जघन्य स्थिति पाई जाती है अतः इसकी जघन्य स्थितिका अन्तरकाल भी सम्भव नहीं। जिसने सम्यग्मिथ्यात्वकी उद्वेलना की और सम्यग्दृष्टि होकर अन्तर्मुहूर्त में उसकी क्षपणा की उसके सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त पाया जाता है, अत: इसका जघन्य अन्तरकाल अन्तमुहूर्त कहा। शेष कथन सुगम है।
६५६८ काय मार्गणाके अनुवादसे पांच स्थावर कायोंमें एकेन्द्रियों के समान भंग है। किन्तु इतनी विशेषता है कि कुछ कम अपनी अपनी उत्कृष्ट स्थिति कहनी चाहिये। पांचों मनोयोगी और पांचों मनोयोगी जीवोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी जघन्य और अजघन्य स्थितिका अन्तर नहीं है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिका अन्तर नहीं है। तथा अजघन्य स्थितिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। काययोगी, औदारिककाययोगी और वैक्रियिककाययोगी जीवोंमें मनोयोगियों के समान भंग है। औदारिक मिश्रकाययोगियोंमें सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तकोंके समान भंग है । किन्तु इतनी विशेषता है कि इनके सात नोकषायोंकी जघन्य स्थितिका अन्तर नहीं है। तथा अजघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर एक समय है। वैक्रियिकमिश्रकाययोगियों में मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय और जुगुप्साकी जघन्य और अजघन्य स्थितिका अन्तर नहीं है । सात नोकषायोंकी जघन्य स्थितिका अन्तर नहीं है। तथा अजघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर एक समय है।
विशेषार्थ-पांचों मनोयोगों और पांचों वचनयोगोंमें मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी जघन्य और अजघन्य स्थितिका तथा सम्यक्त्वकी जघन्य स्थितिका अन्तरकाल नहीं है सो इसका खुलासा पंचेन्द्रिय मार्गणा में जिस प्रकार कर आये हैं उसी प्रकार यहाँ भी जानना चाहिए। तथा उक्त योगोंमेंसे एक योगके रहते हुए अनन्तानुबन्धीकी दो बार विसंयोजना सम्मव नहीं, अतः
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