Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ हिदिविहती ३
९ ५८२. कुदो ? एक्केण श्रणुक्कसहिदीए अविहत्तिएण सह सयलजीवाणमणुक्कस्सद्विदिविहत्तियाणमुवलंभादो ।
३४८
* सिया विहत्तिया च अविहत्तिया च ।
९५८३. कुदो ? अनंतेहि अणुक्कस्सद्विदिविहत्तिएहि सह संखेज्जासंखेज्जानमुक्कस्सडिदिविहत्तियाणमुवलंभादो ।
* एवं सेसाणं पि पयडीणं कायव्वो ।
९ ५८४. जहा मिच्छत्तस्स णाणाजीवेहि भंगविचयपरूवणा कदा तहा सेसपयsis काव्वा |
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$ ५८५ एवं जइवसहाइरियसूचिदत्थस्स उच्चारणाइरिएण बालजणागुग्गहडकयपरूवणं भणिस्सामो । णाणाजीवेहि भंगविचओ दुविहो -- जहण्णओ कस्सओ चेदि । तत्थ उक्कस्सए पयदं । दुविहो णिद्द सो— घेण आदेसेण य । श्रघेण अट्ठावीसहं पयडीणं उक्कस्स हिदीए सिया सव्वे जीवा अविहत्तिया, सिया विहत्तिया च विहत्तिओ च, सिया अविहत्तिया च विहत्तिया च । अकस्माद्विदीए सिया सव्वे जीवा विहत्तिया, सिया विहत्तिया च अविहत्तिओ च, सिया विहत्तिया च विहत्तिया
०५८२. शंका- ऐसा क्यों होता है ?
समाधान- क्योंकि अनुत्कृष्ट स्थिति आविभक्तिवाले एक जीव के साथ सब जीव अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले पाये जाते हैं ।
* कदाचित् बहुत जीव मिथ्यात्वकी अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले होते हैं और बहुत जीव मिथ्यात्वकी अनुत्कृष्ट स्थिति अविभक्तिवाले होते हैं ।
९५८३. शंका- ऐसा क्यों होता है ?
समाधान- क्योंकि कदाचित् अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले अनन्त जीवोंके साथ संख्यात या असंख्यात उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीव पाये जाते हैं ।
* इसी प्रकार शेष प्रकृतियोंकी अपेक्षा भी कथन करना चाहिये ।
९ ५८४. जिस प्रकार नाना जीवोंकी अपेक्षा मिथ्यात्व की भंगविचयप्ररूपणा की है उसी प्रकार शेष प्रकृतियों की भी करनी चाहिये ।
५८५. इस प्रकार यतिवृषभ आचार्यके द्वारा सूचित किये गये अर्थकी उच्चारणाचार्य ने बालजनों अनुग्रहके लिये जो प्ररूपणा की है उसे कहते हैं - - नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचय दो प्रकारका है - जघन्य और उत्कृष्ट । उनमेंसे उत्कृष्टका प्रकरण है । उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - घनिर्देश और आदेशनिर्देश । उनमें से ओघकी अपेक्षा अट्ठाईस प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिकी अपेक्षा कदाचित् सब जीव अविभक्तिवाले होते हैं, कदाचित् बहुत जीव अविभक्तावले और एक जीव विभक्तिवाला होता है । कदाचित बहुत जीव अविभक्तिवाले और बहुत जीव विभक्तिवाले होते हैं । अनुत्कृष्ट स्थितिकी अपेक्षा कदाचित् सब जीव विभक्तिवाले होते हैं । कदाचित् बहुत जीव विभक्तिवाले और एक जीव अविभक्तिवाला होता है । कदाचित् बहुत जीव विभक्तिवाले और बहुत जीव अविभक्तिवाले होते हैं । इसी प्रकार अनाहारकमार्गणातक
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