Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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- जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [द्विविषिहती ३ * अंतरं । मिच्छत्त-सोलसकसायाणमुकस्साहिदिसंतकम्मिगं. अंतरं जहरणेण अंतोमुहुत्त। ... $ ५३८. कुदो ? भणिदकम्माणमुक्कस्सहिदि बंधमाणो जीवो अणुकस्सबंधनो होदूण अंतोमुहुत्तमच्छिय पुणो एदे।सं कम्माणमुक्कस्सद्विदिबंधुवलंभादो । दोण्हमुकस्सहिदाणं विच्चालिमअणुक्कस्सहिदिबंधकालो तासिमंतरं ति भणिदं होदि । एगसमओ जहण्णंतरं किण्ण होदि ? ण, उक्कस्सहिदि बंधिय पडिहग्गस्स पुणो अंतोमहुरेण विणा उकस्सहिदिबंधासंभवादो । जघन्य स्थिति आहारकों के ही सम्भव है, अतः आहारकों के उक्त प्रकृतियों की जघन्य स्थितिका काल ओघके समान कहा । सम्यक्त्व और सम्यग्मिध्यात्वकी जघन्य स्थिति अनाहारकों के भी होती है यहाँ इतना विशेष जानना। आहारकोंका जघन्य काल तीन समय कम खहाभवग्रहण प्रमा ण और उत्कृष्ट काल अंगुलके असंख्यातवें भाग असंख्यातासंख्यात अवसपी उत्सपर्णी काल प्रमाण है. अतः इनके सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वको छोड़कर उक्त सब प्रकृतियोंकी अजघन्य स्थितिका जघन्य काल तीन समय कम खुद्दाभवग्रहण प्रमाण आर उत्कृष्ट काल अंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा। तथा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अजघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल जिस प्रकार पंचेन्द्रियों के घटित करके बतला आये हैं उसी प्रकार आहारकोंके जानना, क्योंकि उससे इसमें कोई विशेषता नहीं है। आहारक अवस्थामें ही अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजना होती है, अतः इनके अनन्तानुबन्धीकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा। अनम्तानुबन्धीका जघन्य सत्त्वकाल अन्तर्मुहूर्त है, अतः इनके अजघन्य स्थितिका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त कहा। चौबीस प्रकृतियोंकी सत्तावाला उपशमसम्यग्दृष्टि जीव जीवनके अन्तिम समयमें सासादन हुआ और दूसरे समयमें मरकर अनाहारक हो गया तो उसके अनन्तानुबन्धीकी अजघन्य स्थिति एक समय भी पाई जायगी, अत: आहारक के अनन्तानुबन्धीकी अजघन्य स्थितिका जघन्य काल एक समय भी कहा। तथा अनन्तानुबन्धीकी अजघन्य स्थितिका उत्कृष्ट काल आहारकके उत्कृष्ट काल प्रमाण होता है यह स्पष्ट है ।
इस प्रकार कालानुगम समाप्त हुआ। * अब अन्तरका प्रकरण है । उसमें मिथ्यात्व और सोलह कषायोंके उत्कृष्ट स्थितिसत्कर्मका जघन्य अन्तर अन्तमुहूते है।।
६५३८. शंका-उक्त प्रकृतियों के उत्कृष्ट स्थिा सत्कमका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त क्यों है ?
समाधान-क्योंकि चूर्णिसूत्रमें कहे हुए कोंकी उत्कृष्ट स्थितिको बाँधनेवाला जो जीव अनुत्कृष्ट स्थितिका कमसे कम अन्तमुहूत काल तक बन्ध करता है उसके अन्तर्मुहूतके बाद पुनः पूर्वोक्त कर्मोंकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध पाया जाता है । इस कथनका यह तात्पय है ।क दानों उत्कृष्ट स्थितियोंके मध्यमें जो अनुत्कृष्ट स्थितिका अन्तमुहूतं प्रमाण बन्धकाल है वह उन दोनों उत्कृष्ट स्थितियोंका अन्तरकाल है।
शंका-जघन्य अन्तर एक समय क्यों नहीं होता ?
समाधान-नहीं, क्योंकि उत्कृष्ट स्थितिको बाँध कर उससे च्युत हुए जीवके पुनः अन्तर्मुहूर्त कालके बिना उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध नहीं हो सकता, अतः जघन्य अन्तर एक समय नही होता।
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