Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२] द्विदिविहत्तीए उत्तरपयडिहिदिअंतर
३२३ पंचिं तिरि जोणिणीसु मिच्छत्त-बारसक० उक्क० ज० अंतोमु०, उक्क० पुवकोडिपुधत्तं । अणुक्कस्स० ज० एगस०, उक्क० अंतोमु० । सम्मत्त०-सम्मामि० उक्क० अंतरं ज० अंतो०. उक्क० पुवकोडिपुधत्तं । अणुक्क० ज० एगस०, उक्क. तिण्णि पलिदो० पुवकोडिपुधरेणब्भहियाणि । अणंताणु०चउक्क० उक्क० मिच्छत्तभंगो । अणुक्क० ज० एगस०, उक्क० तिण्णि पलिदोवमाणि देसूणाणि । पंचणोक० उक्क० ज० एगस०, उक्क० पुवकोडिपुधत्तं । अणुक्क० ज० एगस०, उक्क० अंतोमु० । चत्तारिणोक० उक्क० ज० एगस०, उक्क० पुचकोडिपुधनं । अणुक० ज० एगस०, उक्क० आवलि. असंखे०भागो एगावलिया वा। एवं मणसतिय० । और पंचेन्द्रियतिथंच योनिमती जीवों में मिथ्यात्व और बारह कषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर पूर्वकोटिपृथक्त्व है। तथा अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर पूर्वकोटिपृथक्त्व है। अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर पूर्वकोटिपृथक्त्वसे अधिक तीन पल्य है। अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी उत्कृष्ट स्थितिका अन्तर मिथ्यात्वके समान है। तथा अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तीन पल्य है। पांच नोकषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर पूर्वकोटिपृथक्त्वप्रमाण है । तथा अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। चार नोकषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर पूर्वकोटिपृथक्त्व है। तथा अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर आवलीके असंख्यातवें भागप्रमाण अथवा एक अावली है। इसी प्रकार अर्थात् पंचेन्द्रिय आदि उक्त तीन प्रकारके तिर्यञ्चोंके समान सामान्य मनुष्य, पयोप्त मनुष्य और मनुष्यनी जीवोंके जानना चाहिये।
विशेषार्थ-जिस तिथंचने अर्धपुद्गल परिवर्तन प्रमाण कालके शेष रहने पर उपशम सम्यक्त्वको प्राप्त किया पश्चात् मिथ्यात्वमें जाकर और मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करके अन्तर्मुहूर्त कालमें वेदक सम्यक्त्वको प्राप्त करके सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिको प्राप्ता किया। पश्चात् मिथ्यात्वमें जाकर पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण कालके द्वारा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उद्वेलना की। अनन्तर जो अर्धपदगल परिवर्तन कालके अन्त में कालके शेष रह जाने पर उपशमसम्यक्त्वको प्राप्त करके और मिथ्यात्वमें जाकर तथा मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करके अन्तर्मुहूर्त में वेदकसम्यग्दृष्टि होकर सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिको प्राप्त करता है उसके सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका अन्तर कुछ कम अर्धपुद्गल परिवर्तन काल प्रमाण पाया जाता है। तथा इसी प्रकार अनुत्कृष्ट स्थितिका उत्कृष्ट अन्तर काल घटित कर लेना चाहिये। किन्तु इतनी विशेषता है कि यह अन्तर उद्वेलना कालके अन्तसे प्रारम्भ होता है और अन्तमें उपशमसम्यक्त्वको प्राप्त करनेके समय समाप्त होता है। कोई एक जीव भोगभूमिके तिर्यंचोंमें उत्पन्न हुआ और दो माह गर्भमें रहा । अनन्तर गभसे. निकल कर अन्तर्मुहूर्तमें जिसने वेदकसम्यक्त्वको प्राप्त करके अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजना की। पश्चात् जीवन भर अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजनाके साथ रह कर अन्तमें मिथ्यात्वको प्राप्त होकर अनन्तानुबन्धीका बन्ध किया। उसके अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी अनुत्कृष्ट स्थितिका उत्कृष्ट अन्तर
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