Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा. २२ ]
हिदिविहत्तीए उत्तरपयडिडिदिसामित्त बद्धणिरयाउअस्स पच्छा तित्थयरपादमूलमुवणमिय सम्म घेत्तण अंतोमुहुचावसेसे
आउए अधापवत्तापुव्वाणियट्टिकरणाणि कादण मिच्छत्तसम्मामिच्छत्ताणि अणियट्टि कालभंतरे खविय अणियट्टिकरणद्धाए चरिमसमयम्मि सम्मत्तचरिमहिदिखंड्यचरिमफालिं घेत्तूण उदयादिगुणसेढिसरूवेण घेत्तिय द्विदस्स कदकरणिज्जे त्ति सण्णा कया; सेसदसणमोहवरखवणाविसयकज्जत्तादो । तस्स काउलेस्सं परिणमिय पढमपुढवीए उप्पज्जिय अधहिदिगलणाए चरिमगोवुच्छं मोत्तण गलिदासेसगोवुच्छस्स एगसमयकालेगडिदिदंसणादो।
* सम्मामिच्छत्तस्स जहणणहिदिविहत्ती कस्स ?
४५१. सुगमं०। * चरिमसमयउब्वेल्लमाणस्स ।
- ४५२, कुदो ? सम्मादिहिणा मिच्छ गंतूण अंतोमुत्तमच्छिय सम्मत्तसम्मामिच्छत्ताणमुव्वेल्लणमाढविय पलिदोवमस्स असंखेजदिभागमेत्तद्विदिखंडयाणि जहाकमेण पाडिय उव्वेल्लिदसम्मत्रेण पुणो सम्मामिच्छत्तस्स पलिदो० असंखे०भागमेत्तहिदिकंडए पादिय चरिममुव्वेल्लणकंडयस्स चरिमफालीए पादिदाए समऊणा
समाधान-जो मिथ्यादृष्टि मनुष्य जीव तीव्र आरम्भरूप परिणामोंके द्वारा नरकगतिके साथ नरकायुका बन्ध करनेके अनन्तर तीर्थंकरके पादमूलको प्राप्त होकर और सम्यक्त्वको ग्रहण करके आयुके अन्तर्मुहूर्त शेष रहने पर अधःप्रवृत्त करण, अपूर्वकरण और अनिवृतिकरणरूप परिणामोंको करके तथा अनिवृत्तिकरणके कालके भीतर मिथ्यात्व और सम्मग्मिथ्यात्वका क्षय करके अनिवृत्तिकरणके कालके अन्तिम समयमें सम्यक्त्वकी अन्तिम स्थिति काण्ड ककी अन्तिम फालिको ग्रहण करके और उदयसे लेकर गुणश्रेणीरूपसे उसका निक्षेप करके स्थित है उसे कृतकृत्य यह संज्ञा प्राप्त होती, है क्योंकि इसका कार्य शेष दर्शनमोहनीयकी क्षपणा है। अनन्तर जिसने कापोतलेश्यासे परिणत होकर और पहली पृथिवीमें उत्पन्न होकर अधःस्थिति गलनाके द्वारा अन्तिम गोपुच्छको छोड़कर बाकी के समस्त गोपुच्छको गला दिया है उसके एक समय कालप्रमाण एक स्थिति देखी जाती है। अतः प्रतीत होता है कि नारकीके दर्शनमोहनीयकी क्षपणाके अन्तिम समयमें सम्यक्त्वकी जघन्य स्थितिविभक्ति होती है। ... *नारकियोंमें सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिविभक्ति किसके होती है ?
६४५१ यह सूत्र सुगम है। ..
* सम्यग्मिथ्यात्वकी उद्वलनाके अन्तिम समयमें सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिविभक्ति होती है।
६ ४५२. शंका-उद्वेलनाके अन्तिम समयमें जघन्य स्थितिविभक्ति क्यों होती है ?
समाधान-कोई एक सम्यग्दृष्टि मिथ्यात्वको प्राप्त हुआ और वहां अन्तर्मुहूर्त काल तक रहकर उसने सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उद्वेलनाका आरम्भ करके पल्योपमके असंख्यातवें भाग प्रमाण स्थितिकाण्डकोंका यथाक्रमसे पतन करके सम्यक्त्वकी उद्वेल ना कर ली। पुनः उसके सम्यग्मिथ्यात्वके पल्योपमके असंख्यातवें भाग प्रमाण स्थिति काण्डकोंका पतन करके अन्तिम
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