Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२ ]
हिदिविहत्तीए उत्तरपयडिहिदिकालो एगसमो, उक्क० अंतोमु० ।।
६५२३. सव्वविगलिंदिय० मिच्छत्त-सोलसक-भय-दगुछ० ज० ज० एगसमो. उक्क० वेसमया। अज० ज० खुद्दाभवग्गहणं अंतोमहुतं विसमऊणं एयसमयो वा, उक० अप्पप्पणो उकस्सहिदी । सम्मत्त-सम्मामि० जह• जहण्णक० एगस० । अज० ज० एगस०, उक्क० सगहिदी। सत्तणोक० ज० जहण्णुक० एगस० । अज० ज० अंतोमु०, उक्क० सगहिदी ।
६५२४. पंचिंदिय-पंचिं०पज्ज-तस-तसपज्जा मिच्छत्त-बारसक०-णवणोक० काल एक समय तथा अजघन्य स्थिातका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तमहते है।
विशेषार्थ-एकेन्द्रिय, बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त तथा अपर्याप्त, सूक्ष्म एकेन्द्रिय और सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त तथा अपर्याप्त जीवोंके अपनी अपनी उत्कृष्ट स्थितिका विचार करके सब प्रकृतियों की अजघन्य स्थितिका उत्कृष्ट काल कहना चाहिये । परन्तु एकेन्द्रियोंमें जघन्य स्थिति केवल बादर पर्याप्तके ही होती है सूक्ष्मके जघन्य नहीं होती और सूक्ष्मोंका उत्कृष्ट काल असंख्यात लोक है अतः एकेन्द्रियोंमें अजघन्यका उत्कृष्ट काल असंख्यात लोक कहा है। यद्यपि एकेन्द्रियोंमें अजघन्यकी उत्कृष्ट स्थिति असंख्यात लोक प्रमाण है, फिर भी इनके सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अजघन्य स्थितिका उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण ही प्राप्त होता है, क्योंकि मिथ्यादृष्टि जीवके इससे अधिक काल तक इनकी सत्ता नहा पाई जाती । तथा इन पूर्वोक्त एकेन्द्रियादि जीवोंमें जो जघन्य स्थितिके पश्चात् एक समय तक अजघन्य स्थितिके साथ रहा और दूसरे समयमें मर गया उसके सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके बिना शेष सब प्रकृतियों की अजघन्य स्थितिका जघन्य काल एक समय प्राप्त होता है। तथा इनके सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल तथा अजघन्य स्थितिका जघन्य काल एक समय उद्वेलनाकी अपेक्षा कहा है । तथा मिथ्यात्व, सालह कषाय, भय और जुगुप्साकी जघन्य स्थितिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तमुहर्त तथा सात नाकषायोंकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय सामान्य तियेचांक समान अपनी अपनी पर्यायमें घटित करके जानना चाहिये ।
$ ५२३. सब विकलेन्द्रियोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय और जुगुप्साकी जघन्य स्थितिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल दो समय है तथा अजघन्य स्थितिका जघन्य काल पर्याप्तकोंको छोड़ कर शेषमें दो समय कम खुद्दाभवग्रहणप्रमाण और पर्याप्तकोंमें दो समय कम अन्तर्मुहूर्त अथवा एक समय और उत्कृष्ट काल अपनी अपनी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय तथा अजघन्य स्थितिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अपनी स्थितिप्रमाण है। सात नोकषायोंकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय तथा अजघन्य स्थितिका जघन्य काल अन्तमुहूते और उत्कृष्ट काल अपनी स्थितिप्रमाण है।
विशेषार्थ-विकलत्रयोंमें मिथ्यात्व, बारह कषाय, भय और जुगुप्साकी जघन्य स्थितिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल दो समय तथा अजघन्य स्थितिका जघन्य काल दो समय कम खुद्दाभवग्रहण प्रमाण और दा समय कम अन्तमुहूर्त या एक समय पंचेन्द्रिय तियच निकके समान घटित कर लेना चाहिये। तथा अजघन्य स्थितिका उत्कृष्ट काल अपनी अपनी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण है यह स्पष्ट ही है। शेष कथन सुगम है ।
६५२४. पंचेन्द्रिय, पंचेन्द्रियपर्याप्त, त्रस और त्रस पर्याप्त जीवोंमें मिथ्यात्व, बारह कषाय
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