Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२ ]
हिदिविहत्तीए उत्तरपयडिद्विदिकालो एइंदियभंगो । णबरि सगसगुक्कस्सहिदी वत्तव्वा ।
$ ५२६,पंचमण-पंचवचि० मिच्छत्त-सम्मत्त-सम्मामि०-सोलसक०-णवणोक० जह० ओघं। णवरि छण्णोक० ज० ज० एगस०, उक्क० अंतोमु । सव्वेसिमज० ज० एगस०, उक्क० अंतोमु० । ओरालि० एवं चेव । णवरि सगहिदी । एवं वेउविय० । णवरि छएणोक० ज० जहण्णुक्क० एयस० । कायजोगि० मिच्छत्तसोलसक०-णवणोक० ज० मणजोगिभंगो । अज० ज० एगस०, उक्क० अणंतकालो । सम्मत्र-सम्मामि० एइंदियभंगो। ओरालियमिस्स० बादरेइदियअपज्जत्तभंगो । वरि सत्तणोक • अज. जह• अंतोमु० । वेउव्वियमिस्स० मिच्छत्त-सम्मत्त-सम्मामि०-सोलसक०-णवणोक० ज० जहण्णुक्क० एगस० । अज. जहण्णुक्क० अंतोमु । णवरि सम्मत्त-सम्मामि० अज० ज० एगसमत्रो। एवमाहारमिस्स । णवरि सम्मत्त-सम्मामि० अन० जहण्णुक्क० अंतोमु० । आहार० वेउब्धियभंगो । एवमकसाय-महुम०-जहाक्वादसंजदे त्ति । कम्मइय० मिच्छत्त-सोलसक०-भय-दुगुंछा. कायिक, सभी वायुकायिक और सभी निगाद जीवोंमें एकेन्द्रियों के समान भंग हे। इतनी विशेषता है कि इनके अजघन्य स्थितिका उत्कृष्ट काल अपनी अपनी उत्कृष्ट स्थिति प्रमाण कहना चाहिये। तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार एकेन्द्रियोंके सब प्रकृतियोंकी जघन्य और अजघन्य स्थितिका काल बतला आये हैं उसी प्रकार इनके यथायोग्य जान लेना चाहिये।
६५२६. पाँचों मनोयोगी और पाँचों वचनयोगी जीवोंमें मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व. सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी जघन्य स्थितिका काल ओघके समान है। किन्तु इतनी विशेषता है कि छह नोकषायोंकी जघन्य स्थितिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है तथा सभी प्रकृतियोंकी अजघन्य स्थितिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है। औदारिककाययोगी जीवोंके भी इसी प्रकार जानना चाहिये। किन्तु इतनी विशेषता है कि यहाँ अपनी स्थिति कहनी चाहिये । इसी प्रकार वैक्रियिककाययोगी जीवोंके जानना चाहिये । किन्तु इतनी विशेषता है कि छह नोकषायोंकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । काययोगियोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी जघन्य स्थितिका भंग मनोयोगियों के समान है। तथा अजघन्य स्थितिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट अनन्त काल है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका एकेन्द्रियों के समान भंग है । औदारिकमिश्रकाययोगियोंमें बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तकोंके समान भंग है। किन्तु इतनी विशेषता है कि सात नोकषायोंकी अजघन्य स्थितिका जघन्य काल अन्तमु हूत है। वैक्रियिकमिश्रकाययोगियोंमें मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी जघन्य स्थितिका जघन्य
और उत्कृष्ट काल एक समय तथा अजघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है। किन्तु इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अजघन्य स्थितिका जघन्य काल एक समय है। इसी प्रकार आहारकमिश्रकाययोगियोंमें जानना चाहिये। किन्तु इतनी विशेषता है कि इनके सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अजघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है। आहारककाययोगियोंमें वैक्रियिककाययोगियोंके समान भंग है। इसी प्रकार अकषायी, सूक्ष्मसांपरायिकसंयत और यथाख्यातसंयत जीवोंके जानना चाहिए। कार्मणकाययोगियोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय और जुगुप्साकी जघन्य स्थिति और अजघन्य स्थितिका जघन्य
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