Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० ३२] हिदिविहत्तीए उत्तरपयडिहिदिकालो
३१३ उक्कस्सभंगो । णवरि छण्गोक० जह० जहण्णुक्क० अंतोमु० । अभव० मदिभंगो । णवरि सम्मत्त-मम्मामि० णत्थि ।
लेश्यामें उत्कृष्ट स्थिनिके समान भंग है। किन्तु इतनी विशेषता है कि छह नोकषायोंकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। अभव्योंमें मत्यज्ञानियोंके समान भंग है । किन्तु इतनी विशेषता ह कि इनके सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व ये दो प्रकृतियाँ नहीं हैं।
विशेषार्थ-एकेन्द्रियोके कृष्णादि तीनों लेश्याएँ सम्भव हैं, अतः जिस प्रकार एकेन्द्रियों के मिथ्यात्व, बारह कषाय, भय और जुगुप्साकी जघन्य स्थितिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त तथा अजघन्य स्थितिका जघन्य काल एक समय बतला आये हैं उसी प्रकार कृष्णादि तीन लेश्याओंमें घटित कर लेना चाहिये । किन्तु इनके अजघन्य स्थितिके उत्कृष्ट कालमें विशेषता है । बात यह है कि कृष्णलेश्याका उत्कृष्ट काल साधिक तेतीस सागर, नील लेश्याका उत्कृष्ट काल साधिक सत्रह सागर और कापोत लेश्याका उत्कृष्ट काल साधिक सात सागर है, अतः इनमें उक्त प्रकृतियोंकी अजवन्य स्थितिका उत्कृष्ट काल उक्त प्रमाण ही प्राप्त होगा। उक्त तीनों लेश्याओंमेंसे कोई एक लेश्यावाला जो बादर एकेन्द्रिय जीव जघन्य स्थितिके साथ पंचेन्द्रियोंमें उत्पन्न होता है उसके प्रतिपक्ष प्रकृतियों के बन्धकालके अन्तमें सात नोकषायोंकी जघन्य स्थिति होती है, अतः कृष्णादि तीनों लेश्याओंमें सात नोकषायोंकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा । अब यदि उक्त जीव दूसरे समयमें अजघन्य स्थितिके साथ रहा और तीसरे समयमें उसके विवक्षित लेश्या बदल गई तो उक्त लेश्याओं में सात नोकषायोंकी अजघन्य स्थिति जघन्य काल एक समय प्राप्त होता है इस अपेक्षासे उक्त तीन लेश्याओंमें सात नोकषायोंकी अजवन्य स्थितिका जघन्य काल एक समय कहा । तथा उत्कृष्ट काल स्पष्ट ही है। कृष्ण और नील लेश्यामें सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उद्वेलनाकी अपेक्षा तथा कापोत लेश्यामें सम्यक्त्वको कृतकृत्यवेदक सम्यक्त्वको अपेक्षा और सम्यग्मिथ्यात्वकी उद्वेलनाकी अपेक्षा जवभ्य स्थिति प्राप्त होता है जिसका काल एक समय है, अतः उक्त तीनों लेश्याओंमें सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा। जिस जीवके सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उद्वेलनामें दो समय शेष रहने पर कृष्णादि तीन लेश्याएं प्राप्त होती हैं उसके कृष्णादि तीन लेश्याओंमें उक्त प्रकृतियोंकी अजघन्य स्थिति एक समय तक पाई जाती है, अतः इनके उक्त दो प्रकृतियोंकी अजघन्य स्थितिका जघन्य काल एक समय कहा। किन्तु इतनी विशेषता है कि कापो लेश्यामें एक समय तक सम्यक्त्वकी अजघन्य स्थिति कृतकुत्य वेदकके दो अन्तिम समयकी अपेक्षा घटित करनी चाहिये। तात्पर्य यह है कि सम्यक्त्वकी क्षपणाके दो अन्तिम समयमें कापोत लेश्या प्राप्त करावे और इस प्रकार कापोत लेश्यामें सम्यक्त्वकी अजघन्य स्थितिका जघन्य काल एक समय कहे। तथा उत्कृष्ट काल स्पष्ट ही है । विसंयोजनाके अन्तिम समयमें अनन्तानुबन्धीकी जघन्य स्थिति प्राप्त होती है जा तीनों लेश्याओमें सम्भव है, अतः इनके अनन्तानुबन्धीका जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा । तथा उक्त लेश्याओंके जघन्य और उत्कृष्ट कालकी अपेक्षा उनमें अनन्तानुबन्धीकी अजघन्य स्थितिका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल अपनी अपनी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण कहा। जो क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव उपशमश्रेणीसे उतर कर पीत और पद्मलेश्याको प्राप्त हुआ है वह यदि तदनन्तर शुक्ललेश्याको प्राप्त होकर क्षपकश्रेणीपर चढ़े तो उसके पीत . और पद्मलेश्याके अन्तिम समयमें बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी जघन्य स्थिति होती है।
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