Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [विदिविहत्ती ३ ५३४. लेस्साणुवादेण किण्ह-णील-काउ० मिच्छत्त-बारसक०-भय-दुगुंछ. जह० ज० एगस०, उक्क० अंतोमु० । अज. जह० एगस०, उक्क. सगहिदी। सत्तणोक० जह० जहएणुक्क० एगस० । अज० ज० एगस०, उक्क० सगहिदी । सम्मत्त०-सम्मामि० जह• जहण्णुक्क० एगस । अज० जह० एगस०, उक्क० सगहिदी । अणंताणु०चउक्क० जह० जहण्णुक्क० एगस० । अज० जह• अंतोम०, उक्क संगहिदी।
५३५. तेउ-पम्म० मिच्छत्त सोलसक०-णवणोक० जह० जहण्णुक्क० एगस० । अज० जह० अंतोमु० अणंताणु० एगसमओ वा, उक्क०. सगहिदी । सम्मत्त०सम्मामि० ज० जहण्णुक्क० एगस० । अज० ज० एगस०, उक्क० सगहिदी । सुक्क० उसके सम्यक्त्वकी अजघन्य स्थितिका जघन्य काल एक समय पाया जाता है। तथा असंयतका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है अतः इसके सम्यग्मिथ्यात्वकी अजघन्यु स्थितिका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त कहा। कोई जीव असंयतभावके रहते हुए सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके साथ अधिकसे अधिक साधिक तेतीस सागर काल तक ही रह सकता है अतः असंयतके उक्त दोनों प्रकृतियोंकी अजघन्य स्थितिका उत्कृष्ट काल उक्त प्रमाण कहा। जो असंयत अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजना कर रहा है उसके अन्तिम समयमें अनन्तानुबन्धीकी जघन्य स्थिति होती है अतः असंयतके अनन्तानुबन्धीकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल अोधके समान एक समय कहा । इसी प्रकार ओघमें बताये अनुसार असंयतके अनन्तानुबन्धीकी अजघन्य स्थितिका काल भी घटित कर लेना चाहिये । तथा असंयत जीवके बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी जघन्य और अजघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल मत्यज्ञानियोंके समान बन जाता है अतः इसके उक्त प्रकृतियोंकी जघन्य और अजघन्य स्थितिका काल मत्यज्ञानियोंके समान कहा। छप्रस्थ जीवोंके अचक्षुदर्शन निरन्तर रहता है अतः अचनदर्शनमें सब प्रेकृतियोंकी जघन्य और अजघन्य स्थितिका काल ओघके समान कहा।
६५३४. लेश्यामार्गणाके अनुवादसे कृष्ण, नील और कापोतलेश्यामें मिथ्यात्व, बारह कषाय, भय और जुगुप्साकी जघन्य स्थितिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है। तथा अजघन्य स्थितिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अपनी स्थितिप्रमाण है। सात नोकषायोंकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय तथा अजघन्य स्थितिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अपनी स्थितिप्रमाण है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय तथा अजघन्य स्थितिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अपनी स्थितिप्रमाण है। अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय तथा अजघन्य स्थितिका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल अपनी स्थितिप्रमाण है।
५३५. पीत और पद्म लेश्यामें मिथ्यात्व सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय तथा अजघन्य स्थितिका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त या अनन्तानुबन्धी चतुष्कका एक समय और उत्कृष्ट काल अपनी-अपनी स्थितिप्रमाण है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय तथा अजघन्य स्थितिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अपनी स्थितिप्रमाण है। शुक्ल
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