Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२ ] हिदिविहत्तीए उत्तरपयडिहिदिकालो
२६५ ५१६. विदियादि जाव छहि त्ति मिच्छत्त-बारसक०-णवणोक० ज० जहण्णुक्क० एगस० । अजहण्ण० [जहण्णक० ] जहण्णुक्कस्सहिदी कायव्वा । सम्पत्त-सम्मामि० ज० जहण्णुक० एगस० । अज० ज० एगस०, उक्क० सगहिदी । अणंताणु०चउक्क० जह० जहण्णक्क० एगस० । अज० ज० अंतोमु० एगसमो वा, उकक० सगहिदी । सत्तमाए मिच्छत्त-बारसक०-भय-दुगुंछा० जह० ज० एगस०, उक्क० अंतीमु० । अज० ज. अंतोमु०, उक्क० सगहिदी । [सम्मत्त-] सम्मामि० णिरोघं । अर्णताणु०-सत्तणोक० जह• जहण्णुक्क० एगस० । अज० जह० अंतोम०, उक्क० सगहिदी । जानना चाहिए। किन्तु अजघन्य स्थितिका उत्कृष्ट काल कहते समय उसे पहले नरककी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण कहना चाहिये।
६५१६. दूसरी से लेकर छठी पृथिवी तकके नारकियोंमें मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकपायोंकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है और अजघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति प्रमाण करना चाहिये । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व की जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। तथा अजघन्य स्थितिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अपनी अपनी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण है । अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। तथा अजघन्य स्थितिका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त या एक समय है और उत्कृष्ट काल अपनी अपनी उत्कृष्ट स्थिति प्रमाण है। सातवीं पृथिवीमें मिथ्यात्व, बारह कषाय, भय और जुगुप्साकी जघन्य स्थितिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है । तथा अजघन्य स्थितिका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त
और उत्कृष्ट काल अपनी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी स्थितिका काल सामान्य नारकियोंके समान है। अनन्तानुबन्धी चतुष्क और सात नोकषायोंकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय तथा अजघन्य स्थितिका जघन्य काल अन्तमुहर्त और उत्कृष्ट काल अपनी उत्कृष्ट स्थिति प्रमाण है।
विशेषार्थ-द्वितीयादि पृथिवियोंमें मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी जघन्य स्थिति अन्तिम समयमें ही प्राप्त हो सकती है, अतः यहां उक्त प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा। पर यह जघन्य स्थिति उसी जीवके होती है जिसने उत्कृष्ट आयुके साथ नरकमें उत्पन्न होनेके पश्चात् अन्तमुहूर्त कालके भीतर उपशम सम्यक्त्व प्राप्त कर लिया है और अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजना करके जा जीवन भर वेदक सम्यग्दृष्टि बना रहा है। शेष जीवोंके तो उक्त कमांकी अजघन्य स्थिति ही होती है, अतः द्वितीयादि नरकोंमें उक्त कर्मोंकी अजघन्य स्थितिका जघन्य काल अपनी अपनी जघन्य स्थितिप्रमाण और उत्कृष्ट काल अपनी अपनी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण कहा। यहां सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय तथा अजवन्य स्थितिका जघन्य काल एक समय उद्वेलनाकी अपेक्षा घटित कर लेना चाहिये । शेष कथन सुगम है क्योंकि उसका पहले खुलासा कर आये हैं, उसी प्रकार यहां भी कर लेना चाहिये । सातवीं पृथिवीमें मिथ्यात्व, बारह कषाय, भय और जुगुप्साकी जघन्य स्थिति पर्यायके अन्त में एक समय तक या अन्तमुहूर्त काल तक प्राप्त हो सकती है अतः इसके उप प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त कहा। अनन्तानुबन्धीकी जघन्य स्थिति विसंयोजनाके अन्तिम समयमें तथा सात नोकषायोंकी जघन्य स्थिति भवके अन्तिम अन्तमुहूर्तके भीतर प्रतिपक्ष प्रकृतियोंके बन्धकालके
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