Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयघवलासहिदे कसायपाहुडे
[ विदिविहती ३ छण्णो कसाय जहणहिदीए अंतो मृहुत्तकालुवदेसादो। पुन्विल्लवक्खाणं ण मद्दयं, सुत्तविरुद्धतादो। ण, वक्खाणभेदसंदरिसणड तप्पत्तीदो पडिवक्खरणयणिरायरण - हे उत्तरण भयो । ण च एत्थ पडिवक्खणिरायरणमत्थि तम्हा वे वि णिरवज्जे त्ति घेतव्यं । हिदि- हिदिश्रद्धच्छेदाणं वित्तिमुत्तकत्ताराणमहिप्पाएण कथं मे ? बुच्चदे-सयल गियकाल पहाणो अद्भावेदो, सयलणि सेगपहाणा हिदि ति ण दोहं पुणरुत्तदा । एवं चुण्णिसुत्तोघं परूविय संपहि जहण्णाजहण्णहिदीणं कालपरूवणद्वमुच्चारणाइरियवक्खाणं भणिस्सामो ।
$ ५१४. जहण पदं । दुविहो गिद्देसो-- श्रघेणादेसेण य । मिच्छत्त- बारसक तिण्णिवेद० ज० के० जहण्णुक्क० एगसम । अजहण्ण० केव० १ णादिअपज्ज० अणादिसपज्जवसिदा । सम्मत्त सम्मामि० जह० जहण्णुक्क एगसमओ । अ० ज० अंतोमुहुत्तं, उक्क० वे छावहिसागरो० सादिरेयाणि । श्रणंताणु ० चउक० [ जह० ] जहण्णुक्क० एगसम । अजह० के ० १ अणादिपज्जवसिदा णादिसपज्जवसिदा सादिसपज्जनसिदा । जो सो सादिसपज्जवसिदो भंगो तस्स इमो णिद्देसोकार और उच्चारणाचार्यका यह अभिप्राय नहीं है, क्योंकि उन्होंने छह नोकषायोंकी जघन्य स्थितिका काल अन्तर्मुहूर्त कहा है ।
शंका- पूर्वोक्त व्याख्यान समीचीन नहीं है, क्योंकि वह सूत्रविरुद्ध है ।
समाधान- नहीं, क्योंकि व्याख्यानभेदके दिखलानेके लिये पूर्वोक्त व्याख्यानकी प्रवृत्ति हुई है । जो नय प्रतिपक्षनयके निराकरण में प्रवृत्ति करता है वह समीचीन नहीं होता है । परन्तु यहाँ पर प्रतिपक्ष नयका निराकरण नहीं किया है, अतः दोनों उपदेश निर्दोष हैं ऐसा प्रकृत में ग्रहण करना चाहिये ।
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शंका- तो फिर वृत्तिसूत्र के कर्त्ता के अभिप्रायानुसार स्थिति और स्थितिद्वाच्छेद में भेद कैसे हो सकता है ?
समाधान - सर्व निषेकगत कालप्रधान श्रद्धाच्छेद होता है और सर्वनिषेकप्रधान स्थिति होती है इसलिये दोनों के कथनमें पुनरुक्त दोष नहीं आता है ।
इस प्रकार चूर्णिसूत्रकी अपेक्षा श्रोघका कथन करके अब जघन्य और अजवन्य स्थितियों के कालका कथन करने के लिये उच्चारणाचार्य के व्याख्यानको कहते हैं
$ ५१४. अब जघन्य स्थिति के कालका प्रकरण है । उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका हैनिर्देश और आदेशनिर्देश । उनमें से ओघकी अपेक्षा मिथ्यात्व बारह कषाय और तीन वेदोंकी जघन्य स्थितिका काल कितना है ? जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अजघन्य स्थितिका काल कितना है ? अनादि अनन्त और अनादि- सान्त काल है । सम्यक्व और सम्यग्मिथ्यात्व की जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है तथा अजघन्य स्थितिका जघन्य काल अन्तर्मुर्त है और उत्कृष्ट काल साधिक दो छयासठ सागर है । अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है तथा अजघन्य स्थितिका काल कितना है ? अनन्तानुबन्धी की अजघन्य स्थिति के कालके अनादि-अनन्त, अनादि- सान्त और सादि-सन्त ये तीन विकल्प होते हैं। इनमें जो सादि- सान्त भंग है उसकी अपेक्षा यह प्रकृत में
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