Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधबलासहिदे कसायपाहुडे
[ द्विदिवती ३
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वेजव्वियमिस्स • मिच्छत्त • सोलसक० रावणोक० उक्क० एइंदियभंगो । अशुक्क० जहण्णुक्क० अंतोमु० । वरि णवणोकसाय० अणुक्क० जह० एयसमश्र । सम्मत्तसम्मामि मिच्छत्तभगो । वरि शुक्क० जह० एयसमश्र ।
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९५०३. आहार० सव्वपयडीणमुक्क० जहण्णुक्क० एस० । अणुक्क० ज० एगसमओ उक्क ० अंतोमुहुत्तं । एवमवगद० प्रकसा० सुहुमसांप ० - जहाक्खादसंजदेत्ति | आहार मिस्स ० सव्वपयडीणमुक्क० जहण्णुक्क० एस० । अणुक्क० जहण्णुक्क० अंतोमु० । एवमुवसम० - सम्मामि ० ।
९ ५०४, कम्मइय० मिच्छत्त - सोलसक० - सम्मत्त० सम्मामि० उक्क० जहण्णुक्क० एगस० । अणुक्क० ज० एगसमओ, उक्क० तिण्णि समया । णवरणोकसाय० उक्क० ज० एगस०, उक्क० वेसमया । अणुक० ज० एगसमओ, उक्क० तिण्णि समया । एवमणाहार० ।
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कषायों की अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । वैक्रियक मिश्रका योगियों में मिध्यात्व, सोलहकषाय और नौ नोकषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिका भंग एकेन्द्रियोंके समान है तथा अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । किन्तु इतनी विशेषता है कि नौ नोकषायोंकी अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्य काल एक समय है। तथा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग मिथ्यात्व के समान है । किन्तु इतनी विशेषता है कि अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्य काल एक समय है ।
९५०३. आहारक काययोगी जीवोंमें सब प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय तथा अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल
मुहूर्त है। इसी प्रकार अपगतवेद वाले, अकषायी, सूक्ष्मसाम्परायिकसंयत और यथाख्यातसंयत जीवोंके जानना चाहिये । आहारकमिश्रकाययोगियों में सब प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय तथा अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । इसी प्रकार उपशम सम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवों के जानना चाहिये ।
५०४. कार्मणका योगी जीवोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृतिको उत्कृष्ट स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है तथा अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल तीन समय है । तथा नौ नोकषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल दो समय है । तथा अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल तीन समय है । इसी प्रकार अनाहारक जीवोंके जानना चाहये ।
विशेषार्थ - एकेन्द्रियों के एक काययोग ही होता है, अतः काययोगमें अनुत्कृष्ट स्थितिका उत्कृष्ट काल एकेन्द्रियोंके समान जानना चाहिये । औदारिक मिश्रका जघन्य काल तीन समय कम खुद्दाभवग्रहण प्रमाण और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है अतः इसमें मिथ्यात्व और सोलह कषाय की अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्य काल तीन समय कम खुद्दाभवग्रहण प्रमाण और नौ नोकषायों की अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्य काल एक समय जिस प्रकार एकेन्द्रियों में घटित करके लिख आये हैं उसी प्रकार यहां भी जानना । शेष कथन सुगम है। तथा जिस वैक्रियिककाययोगीने वैक्रियिककायोग उपान्त समयमें उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध किया और अन्त समय में अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध
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