Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [द्विदिविहत्ती ३ * उक्कसेण अंतोमुहुत्तं ।
$ ४८०. कुदो ? दाहहिदि बंधमाणो उकस्सदाहं गंतूण उकस्सहिदि बंधदि; तिस्से बंधकालस्स उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तपमाणत्तादो ।
* एवं सोलसकसायाण। $ ४८१. मिच्छत्तस्सेव सोलसकसायाणमुक्कस्सहिदिकालो जहण्णेण एगसमओ,
विशेषार्थ यहां मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थिति जघन्य रूपसे कितने काल तक पाई जाती है इसका विचार किया है। बात यह है कि जब कोई एक जीव मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करके दूसरे समयमें उत्कृष्ट स्थिति के बन्धके योग्य उत्कृष्ट संक्लेशरूप परिणामोंसे च्युत होकर विशुद्धि को प्राप्त होने लगता है तो उसके उत्कृष्ट स्थितिका सत्त्व एक समय तक देखा जाता है; क्योंकि दूसरे समयमें उसमें से एक समय कम हो जाता है, इसलिये उसमें उत्कृष्ट स्थितिपना नहीं रहता है। इस विषयमें शंकाकारका कहना यह है कि एक तो स्थितिकाण्डकघातसे स्थिति कम होती है और दूसरे प्रथमादि निषेकोंके गल जानेसे स्थिति कम होती है। किन्तु मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्ध होनेके दूसरे समयमें न तो उसका स्थितिकाण्डकघात ही होता है; क्योंकि बन्धावलि सकल करणोंके अयोग्य होती है ऐसा नियम है और न प्रथमादि निषेक ही गलते हैं, क्योंकि मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका आबाधाकाल सात हजार वर्ष है और आबाधाकालमें निषेक रचना नहीं होती, अतः सात हजार वर्षके समयोंको छोड़ कर ही प्रथमादि निषेकों का सदभाव पाया जाता है। यद्यपि उत्कृष्ट स्थितिबन्धके समय और बादमें निषेक गलते हैं पर वे नवीन स्थितिबन्धके न होकर प्राचीन सत्कर्म के होते हैं, अतः जिस समय मिथ्यात्वका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध होता है उस समय उसकी उत्कृष्ट स्थितिका न तो स्थितिकाण्डक घात ही हो रहा है और न प्रथमादि निषेक ही गलते हैं यह सच है, फिर भी उत्कृष्ट स्थिति निषेकप्रधान न होकर कालप्रधान होती है. अतः दसरे समयमें सत्तर कोड़ाकोड़ी सागर में से एक समय कम होजानेके कारण उसमें उत्कृष्ट स्थितिपना नहीं रहता। हां जघन्य स्थिति अवश्य निषेकप्रधान होती है, यदि ऐसा न माना जाय तो क्रोधसंज्वलनकी जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त कम दो महीना नहीं बन सकती है, क्योंकि यह क्रोधसंज्वलनके अन्तिम काण्डककी अन्तिम फालिकी स्थिति है जो कि उसी समय मान संज्वलनरूपसे संक्रमित हो जाती है। अतः कालकी अपेक्षा वह क्रोधरूप एक ही समय रही पर उस समय उस अन्तिम फालिमें निषेक अवश्य अन्तमुतहूर्त कम दो माहके समय प्रमाण होते हैं और इसलिये इस अन्तिम फालिकी जघन्य स्थिति अन्तमुहूर्त कम दो माह कही जाती है । उक्त कथनका सार यह है कि उत्कृष्ट स्थितिमें कालकी प्रधानता है और जघन्य स्थितिमें निषेकोंकी। अतः सत्तर कोड़ाकोड़ी सागरमें से एक समयके घट जाने पर भी मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थिति नहीं रहती।
* उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है। ६४८०. शंका-उकृष्ट काल अन्मुहूर्त क्यों है ?
समाधान-क्योंकि, दाहस्थितिको बाँधनेवाला जीव उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त होकर उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करता है तब उस उत्कृष्ट स्थितिके बन्धकालका उत्कृष्ट प्रमाण अन्तर्मुहूर्त है। ___* इसी प्रकार सोलह कषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिका काल जानना चाहिये ।
६४८१. मिथ्यात्वके समान सोलह कषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिका जघन्यकाल एक समय
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