Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२]
द्विदिविहत्तीए उरपयडिष्टिदिसामित्तं २६६ उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तमेत्तो; परपयडीदो संकेतहिदीए विणा सगुक्कस्सबंध चेव अस्सिदूण उक्कस्सहिदिग्गहणादो।
* णवंसयवेद-अरदि-सोग-भय-दुगुंछाणमेवं चेव ।
$ ४८२. एगसमयमेत्तजहण्णकालेण अंतोम हुत्तमेत्तुक्कस्सकालेण च सोलसकसाएहितो भेदाभावादो। कसायउक्कस्सहिदीए बंधावलियादिक्कताए अप्पप्पणो उवरि संकेताए उकस्सहिदि पडिवज्जमाणाणं णोकसायाणं कथं कालेण समाणदा ? ण, उक्कस्सबंधेण सह अविरुद्धबंधाणं बंधकमेणेव पडिच्छिदउक्कस्सहिदिसंतकम्माणं कालेण समाणत्ताविरोहादो।
और उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्तप्रमाण है; क्योंकि यहाँ पर प्रकृतिसे संक्रमण होकर प्राप्त होनेवाली स्थितिको छोड़कर अपने उत्कृष्ट बन्धकी अपेक्षा ही उत्कृष्ट स्थितिका ग्रहण किया है।
विशेषार्थ-पहले मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिके उत्कृष्ट कालका निर्देश करते समय जो टीकामें दाह शब्द आया है वह संक्लेशरूप परिणामों के अर्थमें आया है । दाहका मुख्यार्थ ताप या संताप होता है, जो कि संक्लेशके होने पर होता है, अतः यहाँ दाहसे संक्लेशरूप परिणामों का ग्रहण किया है। उत्कृष्ट स्थितिके बन्धके प्रयोजक ऐसे संक्लेशरूप परिणाम अधिकसे अधिक अन्तमुहूर्त कालतक ही होते हैं अतः उत्कृष्ट स्थितिका काल अन्तर्मुहूर्त कहा है। चूँ कि उत्कृष्ट संक्लेशरूप परिणाम कम से कम एक समय तक और अधिक से अधिक अन्तमुहूतं काल तक होते हैं, अतः सोलह काषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिका जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त कहा है। यहाँ इतना विशेष जानना चाहिए कि मिथ्यात्व और सोलह कषायोंकी उत्कृष्ट स्थिति बन्धसे ही प्राप्त होती है संक्रमणसे नहीं, क्योंकि मिथ्यात्वमें संक्रमित होनेवाली सम्यक्त्व और सम्यग्यिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थिति यदि सत्तर कोड़ाकोड़ी सागर हो और सोलह कषायोंमें संक्रमित होनेवाली अन्य प्रकृतियोंकी स्थिति चाल स कोड़ाकोड़ी सागर हो तो संक्रमणसे मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थिति सत्तर कोड़ाकोड़ी सागर और सोलह कषायोंकी उत्कृष्ट स्थिति चालीस कोड़ाकोड़ी सागर प्राप्त हो सकती है पर अन्य प्रकृतियोंकी सत्तर और चालीस कोड़ाकोड़ी सागरसे कम ही स्थिति होती है, अतः इन मिथ्यात्व आदिककी बन्धकी अपेक्षा ही उत्कृष्ट स्थिति जाननी चाहिये ।
* नपुंसकवेद, अरति, शोक, भय और जुगुप्साकी उत्कृष्ट स्थितिका काल इसी प्रकार होता है।
६ ४८२. क्योंकि एक समय प्रमाण जघन्य काल और अन्तर्मुहूर्त प्रमाण उत्कृष्ट कालकी , अपेक्षा सोलह कषायोंसे इनके कालमें कोई भेद नहीं है।
शंका-कषायोंकी उत्कृष्ट स्थिति बन्धावलिको व्यतीत करके नौ नोकषायोंमें संक्रान्त होती है और तब जाकर नौ नोकषाएँ उत्कृष्ट स्थितिको प्राप्त होती हैं अतः इनकी कालकी अपेक्षा कषायोंके साथ समानता कैसे हो सकती है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि उत्कृष्ट बन्धके साथ जिनका बन्ध अविरुद्ध है तथा बन्धक्रमसे ही जिन्होंने उत्कृष्ट स्थिति सत्कर्मको प्राप्त कर लिया है उनकी कालकी अपेक्षा कषायोंके साथ समानता माननेमें कोई विरोध नहीं आता है।
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