Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
View full book text
________________
गा० २२] हिदिविहत्तीए उत्तरपयडिविदिसामित्त
२४६ संखेज्जहिदि-अणुभागखंडयसहस्साणि पादिदाणि । एवं पादिय अहकसायाणं चरिमहिदिअणुभागकंडयाणि घेत्तु माढत्ताणि । तेसिं चरमफालीसु णिवदिदासु उदयावलियब्भंतरे समयूणावलियमेत्ता णिसेया लभंति;उदयाभावेण पढमणिसेयस्स परसरूवेण गदस्स अहकसायसरूवेण अभावादो । तेसु णिसेगेसु जहाकमेण अघहिदीए गलमाणेसु जाधे जस्स एया हिंदी दुसमयकाला सेसा ताधे तस्स जहण्णहिदिविहत्ती होदि त्ति घेत्तव्वं । एसो पडत्यो ।
* कोधसंजलणस्स जहण्णहिदिविहत्ती कस्स ! $ ४३५. सुगममेदं । * खवयस्स चरिमसमयअणिल्लेविदे कोहसंजलणे।
४३६. खवयस्से त्ति ण वत्तव्यं, पडिसेझाभावादो । णोवसामयपडिसेहह'; तस्स कोहसंजलणस्स णिल्लेवत्ताभावादो । तम्हा चरिमसमयअणिल्लेविदे कोहसंजलणे चि एत्तियं चेव वत्तव्वं ? ण एस दोसो, कोहसंजलणस्स णिल्लेघओ खवओ चेव ण उवसामओ त्ति जाणावण खवयस्से त्ति णिद्देसादो । ण च मुत्तमंतरेण असंख्यातगुणी श्रेणीके द्वारा कर्मप्रदेशस्कन्धोंका गालन करता हुआ हजारों स्थितिकाण्डक और अनुभागकाण्डकों का पतन किया । इस प्रकार हजारों काण्डकोंका पतन करके आठ कषायोंके अन्तिम स्थिति और अनुभाग काण्डकों के घात करने का प्रारम्भ किया और इस प्रकार उनकी अन्तिम फालियोंका पतन हो जाने पर उदयावलिके भीत्र एक समय कम आवली प्रमाण निषेक प्राप्त होते हैं, क्योंकि उदय न होनेके कारण प्रथम निषेक परप्रकृतिरूप हो जाता है अतः उसका आठ कषायरूपसे अभाव हो जाता है । अनन्तर उन उदयावलीमें प्रविष्ट निषेकोंका यथा क्रमसे अधःस्थितिके द्वारा गलन होते हुए जिस समय एक स्थिति दो समय कालप्रमाण शेष रहती है उस समय उसके जघन्य स्थितिविभक्ति होती है ऐसा यहाँ ग्रहण करना चाहिये । यह उक्त सूत्रका समुदायार्थ है।
* क्रोधसंज्वलनकी जघन्य स्थितिविभक्ति किसके होती है ? ४३५. यह सूत्र सुगम है।
* क्रोधसंज्वलनकी सत्त्वव्युच्छित्तिके अन्तिम समयमें विद्यमान क्षपक जीवके क्रोधसंज्वलनकी जघन्य स्थितिविभक्ति होती है।
६४३६. शंका-सूत्रमें 'क्षपकके' यह नहीं कहना चाहिये, क्योंकि प्रतिषेध करने योग्य कोई और दूसरा नहीं है। यदि कहा जाय कि उपशामकका प्रतिषेध करनेके लिये उक्त पद दिया है सो भी बात नहीं है, क्योंकि उपशामकके क्रोधसंज्वलनका अभाव नहीं होता है। अतः 'चरिमसमयअणिल्लेविदे कोहसंजलणे' इतना ही कहना चाहिये ?
समाधान-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि क्रोधसंज्वलनका अभाव करनेवाला क्षपक ही होता है उपशामक नहीं। इस बातका ज्ञान करानेके लिये सूत्रमें 'ग्लवयस्स' पदका निर्देश किया
न
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org