Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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अयधवलासहिदे कसायपाहुडे द्विदिविहत्ती ३ दोण्हमित्थिवेदणिसेयाणं विदियहिदीए वि पलिदोवमस्स असंखेजदिभागमेत्तणिसेयाणं चरिमफालिसरूवेण अवहिदाणं तत्थुवलंभादो। अण्णवेदोदयक्खवयस्स जहण्णसामि किण्ण दिज्जदे ? ण, उदयाभावेण पढमहिदिविरहियस्स विदियहिदीए चेव अवहिदस्स पलिदो. असंखेजदिभागमेत्तणिसेगेसु इत्थिवेदस्स चरिमफालीए अवहाणुवलंभादो । एगाए णिसेगहिदीए उदयगदाए सुद्धपुव्वुत्तरासेसणिसगाए वट्टमाणो जहण्णहिदिसामि त्ति भणिदं होदि ।
* पुरिसवेदस्स जहण्णहिदिविहत्ती कस्स ? ६४४२. सुगमं० । * पुरिसवेदखवयस्स चरिमसमयअणिल्लेविदपुरिसवेदस्स। .
$ ४४३. जस्स पुन्चमेत्येव भवे पुरिसवेदो उदयमागदो सो जीवो पुरिसवेदो; साहचज्जादो । तस्स पुरिसवेदक्खवयस्स चरिमसमयअणिल्लेविदपुरिसवेदस्स जहण्णसामि होदि तत्थ अंतोमुहुत्तणअहवस्समेत्तहिदीए उवलंभादो । इत्थिवेदस्स भण्ण
समाधान नहीं, क्योंकि द्विचरम समयमें स्त्रीवेद सम्बन्धी प्रथम स्थितिके दो निषेक पाये जाते हैं और द्वितीय स्थितिके भी अन्तिम फालिरूपसे पल्योपमके असंख्यातवें भाग प्रमाण निषेक पाये जाते हैं अतः द्विचरम समयवाला सवेद जीव जघन्य स्थितिका स्वामी नहीं होता है।
' शंका-अन्य वेदके उदयमें स्थित क्षपक जीवको स्त्रीवेदकी जघन्य स्थितिका स्वामी क्यों नहीं कहा ?
समाधान-नहीं, क्योंकि ऐसे जीवके स्त्रीवेदका उदय नहीं होता अतः उसकी प्रथम स्थिति नहीं पाई जाती किन्तु केवल द्वितीय स्थिति ही पाई जाती है पर उसकी अन्तिम फालिके निषेकों का प्रमाण पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण होता है, अतः अन्य वेदके उदयमें स्थित क्षपक जीव स्त्रीवेदकी जघन्य स्थितिका स्वामी नहीं हो सकता।
जो स्त्रीवेदी क्षपक जीव स्त्रीवेदके पूर्वोत्तर सब निषेकोंसे रहित है और उदय प्राप्त एक निषेक स्थितिमें विद्यमान है वह स्त्रीवेदकी जघन्य स्थितिका स्वामी होता है यह उक्त सूत्रका तात्पर्य है।
* पुरुषवेदकी जघन्य स्थितिविभक्ति किसके होती है ? ६४४२. यह सुगम है।
* जिसके पुरुषवेदका अभाव नहीं हुआ है ऐसे पुरुषवेदी क्षपक जीवके अन्तिम समयमें पुरुषवेदकी जघन्य स्थितिविभक्ति होती है।
६४४३ जिसके पहले इसी भवमें पुरुषवेद उदयको प्राप्त हुआ है वह जीव पुरुषवेदके साहचर्यसे पुरुषवेदी कहलाता है। उस पुरुषवेदी क्षपक जीवके पुरुषवेदके सत्त्वके अन्तिम समयमें जघन्य स्वामित्व होता है, क्योंकि वहाँ पर अन्तर्मुहूर्त कम आठवर्ष प्रमाण स्थिति पाई जाती है।
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