Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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- जयधवलासहिदे कसायपाहुडे । [द्विदिविहत्ती ३ ३०९. श्रादेसेण णेरइएसु सव्वपदा के० खे० पो० ? लोग० असंखेभागो छ चोदस० देसूणा । पढमपुढवि० खेत्तभंगो। विदियादि जाव सत्तमि त्ति सव्वपदाणं विहत्तिएहि के० खे० पो० ? लोग० असंखे०भागो एक बे तिण्णि चत्तारि पंच छ चोदसभागा देसूणा ।
३१०. तिक्खि० असंखे भागवड्डी-हाणी०-अवहि० के० ? सव्वलोगो । दोवड्डी-दोहाणी० के० खे० पो० ? लोग० असंखे०भागो सव्वलोगो वा। एवमोरालियमिस्स-कम्मइय-तिण्णिले०-असण्णि०-अणाहारि त्ति ।
विशेषार्थ-ओघसे असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भागहानि और अवस्थित पदवालोंका स्पर्श सब लोक बतलानेका कारण यह है कि इन पदवाले जीवोंका प्रमाण अनन्त है और वे सब लोकमें पाये जाते हैं। संख्यात भागवृद्धि, संख्यात गुणवृद्धि, संख्यात भागहानि और संख्यात गुणहानि इन पदवालोंका स्पर्श तीन प्रकारका बतलाया है। लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श वर्तमान कालकी अपेक्षा बतलाया है। कुछ कम आठ बटे चौदह राजु प्रमाण स्पर्श विहार, वेदना आदि की अपेक्षा बतलाया है, क्योंकि उक्त पदवालोंका नीचे दो राजु और ऊपर छह राजु तक गमनागमन पाया जाता है। और सब लोक प्रमाण स्पर्श मारणान्तिक समुद्धात और उपपादपदकी अपेक्षा बतलाया है । तथा असंख्यात गुणहानिवालोंका स्पर्श लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण बतलानेका कारण यह है कि इस पदको नौवें गुणस्थानवाले जीव ही प्राप्त होते हैं। पर नौवें गुणस्थानवालोंका स्पर्श लोकके असंख्यातवें भागसे अधिक नहीं है। कुछ मार्गणाएं भी ऐसी हैं जिनमें यह ओघ. प्ररूपणा अविकल बन जाती है। जैसे काययोगी आदि, अतः इनके कथनको ओघके समान कहा।
३०६. आदेशनिर्देशकी अपेक्षा नारकियोंमें सभी पदवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका और त्रसनालीके चौदह भागोंमें से कुछ कम छह भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। पहली पृथिवीमें स्पर्श क्षेत्रके समान जानना चाहिये। दूसरी पृथिवीसे लेकर सातवीं पृथिवी तक सभी पदवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका और त्रसनालीके चौदह भागोंमें से कुछ कम एक, लुछ कम दो, कुछ कम तीन, कुछ कम चार, कुछ कम पांच और कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है।
विशेषार्थ-नरकमें सामान्य नारकियोंका और प्रत्येक नरकके नारकियोंका जो स्पर्श बतलाया है वही यहां सब पदवालोंका स्पर्श है उससे इसमें कोई विशेषता नहीं है। कारण यह है कि सब नारकी संज्ञी पंचेन्द्रिय होते हैं अतः सबके सब पद सम्भव हैं और इसीलिये यहां प्रत्येक पदकी अपेक्षा वही स्पर्श प्राप्त होता है जो सामान्य नारकियोंके या उस नरकके नारकियोंके बतलाया है।
६३१०. तिथंचोंमें असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भागहानि और अवस्थित विभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? सर्वलोक क्षेत्रका स्पर्श किया है । तथा दो वृद्धि और दा हानिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग और सर्वलोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है । इसी प्रकार औदारिकमिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी, कृष्णादि तीन लेश्यावाले, असंज्ञी और अनाहारक जीवोंके जानना चाहिये।
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