Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा• २२] द्विदिविहत्तीए उत्तरपयडिविदिसामित्त
२२६ एवं अद्ध वाणुगमो समत्तो। * एयजीवेण सामित्त ।
६४०५. सामित्ताणुगमेण सामित्तं दुविहं-जहण्णमुक्कस्सं च । उकस्से पयदं । दुविहो णिद्देसो-ओघेण आदेसेण य । तत्थ ओघेण उक्कस्ससामित्तं भणामि त्ति पइज्जामुत्तमेदं सुगमं । ___ * मिच्छत्तस्स उक्कस्सद्विदिविहत्ती कस्स ? उक्करसहिदि बंधमाणस्म ।
४०६ एदस्स जइवसहाइरियमुहकमलविणिग्गयस्स सामित्तसुत्तस्स अत्थपरूवणं कस्सामो। तं जहा, मिच्छत्तस्से ति णिद्देसो सेसपयडिपडिसेहफलो । उकस्सहिदिविहत्तिणिद्देसो सेसहिदिविहत्तिपडिसेहफलो। कस्से त्ति पुच्छा सयस्स कत्तारत्तपडिसेहफला । उक्कस्सहिदि बंधमाणस्से त्ति, वयणं अणुक्कस्सहिदिबंधेण सह उक्कस्सहिदिसंतपडिसेहफलं । अणुक्कस्सहिदीए बज्झमाणाए वि उक्कस्सहिदिणिसेयाणमधहिदिगलणा णत्थि ति उक्कस्सहिदिविहत्ती किण्ण होदि ? ण, चरिमणिसेयस्स उक्कस्सकालुवलक्खियस्स उक्कस्सहिदिसण्णिदस्स अपहिदिगलणाए एगहिदीए विकल्प नहीं बनता। इन दो मार्गणाओंके अतिरिक्त शेष जितनी मार्गणाए हैं उनमें चारों प्रकारकी स्थितियां सादि और अध्रुव हैं, क्योंकि एक तो मार्गणाएं परिवर्तनशील हैं और दूसरे सब मार्गणाओंमें यथायोग्य ओघ उत्कृष्ट स्थिति आदि न प्राप्त होकर आदेश उत्कृष्ट स्थिति आदि प्राप्त होती हैं।
__ इस प्रकार अध्रु वानुगम समाप्त हुआ। .8 अब एक जीवकी अपेक्षा स्वामित्वानुगमको कहते हैं ।
६४०५ स्वामित्वानुगमकी अपेक्षा स्वामित्व दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उनमेंसे पहले उत्कृष्ट स्वामित्वका प्रकरण है। उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । उनमेंसे ओघकी अपेक्षा उत्कृष्ट स्वामित्वको कहते हैं इस प्रकार यह प्रतिज्ञासूत्र सरल है।
* मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति किसके होती है ? उत्कृष्टस्थितिको बाँधनेवाले जीवके होती है। ____६४०६. अब यतिवृषभ आचार्यके मुखसे निकले हुए इस स्वामित्वसूत्रके अर्थका कथन करते हैं जो इस प्रकार है- सूत्रमें मिथ्यात्व पदके देनेका फल शेष प्रकृतियोंका निषेध करना है। उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति पद देनेका फल शेष स्थिति विभक्तियोंका निषेध करना है। किसके होती है' इस प्रकार पृच्छाका आशय स्वकर्तृत्वका प्रतिषेध करना है। उत्कृष्ट स्थितिको बांधनेवाले जीवके इस वचनके देनेका फल अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धके साथ उत्कृष्ट स्थितिसत्त्वका प्रतिषेध करना है।
शका-अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध होते हुए भी उत्कृष्ट स्थितिके निषेकोंका अधःस्थितिगलन नहीं होता है, अतः अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धके समय उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति क्यों नहीं होती है।
समाधान-नहीं, क्योंकि जिसकी उत्कृष्ट स्थिति यह संज्ञा है ऐसे उत्कृष्ट कालसे उपलक्षित
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