Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
View full book text
________________
गो०२२] द्विदिविहत्तीए उत्तरपयडिहिदिसामित्त
२४३ * सम्मत्तस्स जहण्णहिदिविहत्ती कस्स ? ६४२७. सुगममेदं । * चरिमसमयअक्रवीणदंसणमोहणीयस्स ।
$ ४२८. चरिमसमयअक्खीणसम्मत्तस्से त्ति वत्तव्वं तेणेत्थ अहियारादो ग चरिमसमयअक्खीणदंसणमोहणीयस्से त्ति ? ण एस दोसो, मिच्छत्त-सम्मामिच्छचे खइय पच्छा सम्म खविज्जदि ति कम्माण क्खवणकमजाणावणह चरिमसमयअक्रवीणदंसणमोहणीयस्से ति णिसादो। मिच्छत्त-सम्मामिच्छतेमु कं पुव्वं खविज्जदि ? मिच्छत् । कुदो, अच्चमुहत्तादो । असुहस्स कम्मस्स पुव्वं चेव खवणं होदि त्ति कुदो णयदे ? सम्मत्तस्स लोहसंजलणस्स य पच्छा खयण्णहाणुवत्तीदो। ऐसा कोई नियम नहीं है कि जो पद पूर्ववर्ती सूत्रोंमें आये हों उन्हींका केवल अध्याहार किया जा सकता है ! किन्तु सरल होनेसे जो पद सूत्रमें नहीं कहे गये हों पर जिनके कथन करनेसे अर्थ बोधमें सुगमता जाती हो ऐसे पदोंको ऊपरसे भी जोड़ा जा सकता है, क्योंकि अध्याहारका अर्थ भी यही है कि जिस वाक्यका अर्थ अस्पष्ट हो उसे शब्दान्तरकी कल्पना द्वारा स्पष्ट कर देना चाहिये। अब यदि ऐसे पद पूर्ववर्ती सूत्रोंमें मिल जाते हैं तो अच्छा ही है और यदि नहीं मिलते हैं तो कल्पनाद्वारा उन्हें ऊपरसे भी जोड़ा जा सकता है ।
* सम्यक्त्वकी जघन्य स्थितिविभक्ति किसके होती है ? ६४२७. यह सूत्र सुगम है।
* जिसने दर्शनमोहनीयका तय नहीं किया है ऐसे जीवके दर्शनमोहनीयके क्षय होनेके अन्तिम समयमें सम्यक्त्वकी जघन्य स्थितिविभक्ति होती है। . ४२८ शंका-सूत्रमें 'जिसने दर्शनमोहनीयका क्षय नहीं किया है ऐसे जीवके अन्तिम समयमें' यह न कहकर 'जिसने सम्यक्त्वका क्षय नहीं किया है ऐसे जीवके अन्तिम समयमें ऐसा कहना चाहिये, क्योंकि सम्यक्त्वका यहां अधिकार है ?
समाधान-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्वको क्षय करके अनन्तर सम्क्त्व का क्षय करता है इस प्रकार कर्मों के क्षपणके क्रमका ज्ञान करनेके लिये 'जिसने दर्शन मोहनीयका क्षय नहीं किया है ऐसे जीवके अन्तिम समयमें यह कहा है। .
शंका-मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्वमें पहले किसका क्षय होता है ? समाधान-पहले मिथ्यात्वका क्षय होता है। शंका-पहले मिथ्यात्वका क्षय किस कारणसे होता है ? समाधान-क्योंकि मिथ्यात्व अत्यन्त अशुभ प्रकृति है। शंका-अशुभ कर्मका पहले ही क्षय होता है यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? .
समाधान-अन्यथा सम्यक्त्व और लोभ संज्वलनका पश्चात् क्षय बन नहीं सकता है, इस प्रमाणसे जाना जाता है कि अशुभ कर्मका क्षय पहले होता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org