Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयrवलासहिदे कसायपाहुडे
[ हिदिविहत्ती ३
कंड सहस्सा णि घादिय समयं पडि श्रसंखेज्जगुणाए सेढीए कम्मक्खं गालियरअद्धा संखेजे भागेसु गदेसु मिच्छत्तचरिमफ/लिं पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्तमुदयावलियादो बाहिरिल्लयं घेत्तृण सम्मत्तसम्मामिच्छत्तेषु संकामेंतेण उव्वरा.विदस मऊणुदयावलियमेत्तद्विदीसु थिउक्कसंकमेण संकमंतीसु मिच्छत्तेयणिसेयणिसेयहिदी दुसमयकाल दिए उवलंभादो । कथमणंताणं परमाणुणं ठिदिववएसो ? ण, हारे ओवारादो । कथमेयत्तं ? ण दुसमयकालावहाणेण समाणाणमेयत्ताविरोहादो ।
९ ३७२. एवं सम्मामिच्छत्त बारसकसायाणं पि वत्तव्वं । वरि अप्पप्पणी 'चरिमफालीओ परसरूवेण संछुहिय उदयावलियपविरिण सेयद्विदीओ थिवुक्कसंकमेण कामिय यणिसे हिदीए दुसमयका लाए सेसाए जहण्णडिदिविहत्ती होदित्ति वत्तव्वं । एदेसिं सव्वकम्माणं सगसगणियट्टिश्रद्धासु संखेज्जसु भागेसु गदेसु चरिमफालीओ पदंति । अताणुबंधिचक्कस्स पुण अणियअद्धाए चरिमसमए चरिमफाली पददि
कालमें भी यह जीव हजारों स्थितिकाण्डक और अनुभागकाण्डकोंका घात करके प्रतिसमय असंख्यातगुणी श्र ेणी रूपसे कर्मस्कन्धोंका नाश करता है और इस प्रकार जब यह जीव अनिवृत्तिकरण के काल संख्यात बहुभागको व्यतीत कर देता है तब वह पल्योपमके असंख्यातवें भाग प्रमाण मिध्यात्वकी अन्तिम फालिको उदयावलि के बाहरसे ग्रहण करके सम्यक्त्व और सम्यग्मि ध्यात्वमें संक्रान्त करता है और उदद्यावलिप्रमाण जो निषेक शेष रहे हैं उनमें से एक समय कम उदयावलिप्रमाण स्थितिको भी स्तिवक संक्रमण के द्वारा ( सम्यक्त्वप्रकृति में ) संक्रान्त कर देता है । तब इस जीवके मिध्यात्व के एक निषेककी दो समय प्रमाण निषेकस्थिति प्राप्त होती है ।
शंका- अनन्त परमाणुओंको स्थिति संज्ञा कैसे प्राप्त होती है ?
समाधान- ● आधारमें आधेयके उपचार से अनन्त परमाणुओंको स्थितिसंज्ञा प्राप्त हो जाती है ?
शंका- ये एक कैसे हो सकते हैं ?
समाधान — नहीं क्योंकि दो समय काल तक रहनेके कारण इनमें समानता है, इसलिये इनको एक मानने में कोई विरोध नहीं है ।
६ ३७२. जिस प्रकार मिध्यात्वकी एक जघन्य स्थिति दो समय प्रमाण कही उसी प्रकार सम्यग्मिथ्यात्व और बारह कषायोंकी भी कहनी चाहिये । इतनी विशेषता है कि अपनी अपनी अन्तिम फालिको पररूपसे संक्रमित करके तथा उद्यावलिमें स्थित निषेकोंकी स्थितिको स्तिवुक संक्रमणके द्वारा संक्रामित करके जो दो समय प्रमाण एक निषेककी स्थिति शेष रहती है वह उक्त कर्मोंकी जघन्य स्थितिविभक्ति होती है प्रकृत में ऐसा कथन करना चाहिये । इन सभी कर्मोंकी अपने अपने अनिवृत्तिकरण के कालके संख्यात बहुभाग व्यतीत होने पर अन्तिम फालियोंका पलन होता है । परन्तु अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी अन्तिम फालिका पतन अनिवृत्तिकरण के कालके
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