Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
View full book text
________________
जयधवलासहिदे कसायपाहुडे एवमद्धादो समत्तो ।
४०१ सव्वद्विदिविहत्ति० णोसव्वडिदिविहत्ति० । सव्वाओ हिदीओ सव्वद्विदिविहत्ती । तदूणं णोसव्वद्विदिविहत्ती । एवं णेदव्वं जाव अणाहारए त्ति ।
२२६
९ ४०२. उक्कस्स० विहत्ति- अणुक्कस्स ० विहत्तिअणुगमेण दुविहो० । ओघे० सव्वुकस्सट्ठिदी उकस्सद्विदिविहत्ती । तदूणमणुकस्सद्विदिविहत्ती । उकस्सद्विदिविहत्तिसव्वद्विदिविहत्ती को भेदो ? ण, सव्वणिसेगहिदीगं समुदाय सव्वहिदिविहत्ती णाम | उक्कसहिदिविहत्ती पुण उक्कस्सकालुवलक्खिओ चरिमणिसे एको चेव । तेण दोहमत्थि भेओ । उक्कस्सडिदिणिसेयवदिरित्तसव्वणिसेया अणुक्कस्सहिदिवि हत्ती णाम । सव्वणि सेयद्विदीसु अण्णदरणिसेगे श्रवखिदे सेसद्विदीओ गोसव्वद्विदिविहत्ती गाम । तेण ण पुणरुत्तदोसो ति सिद्धं । एवं वेदव्वं जाव अणाहारए त्ति ।
[हिती ३
४०३. जहण्ण - अजहण्णहिदि • दुवि० । ओघे० सव्वजहण्णहिदी जहण्णहिदिवित्ती तदुवरि अजहण्णडिदिविहत्ती । उक्कस्सअद्धाछेदे उकस्सडिदिविहत्ती किण्ण
सागर प्रमाण होते हुए भी कमसे कम पाई जाती है, अतः सासादनसम्यग्दृष्टियों के सब प्रकृतियोंकी जघन्य स्थिति कषायी जीवोंके सामान कही ।
इस प्रकार अद्धाच्छेद समाप्त हुआ ।
९४०१ सर्वस्थितिविभक्ति और नोसर्वस्थितिविभक्ति अनुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - ओघ निर्देश और आदेश निर्देश उनमें से ओघकी अपेक्षा सब स्थितियां सर्वस्थितिविभक्ति हैं और सब स्थितियोंसे न्यून स्थितियां नोसर्वंस्थितिविभक्ति है । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणातक ले जाना चाहिये ।
९ ४०२ उत्कृष्टस्थितिविभक्ति और अनुत्कृष्टस्थितिविभक्ति अनुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - ओघ निर्देश और आदेश निर्देश । उनमें से घी अपेक्षा सबसे उत्कृष्ट स्थिति उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति है और इससे न्यून अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्ति है ।
शंका-- उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति, और सर्वस्थितिविभक्ति में क्या भेद है ?
समाधान- नहीं, क्योंकि, सब निषेकों की स्थितियोंके समुदायका नाम सर्वस्थितिविभक्ति है परन्तु उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिउत्कृष्ट कालसे उपलक्षित एक अन्तिम निषेक कहलाता है, अतः इन दोनों में भेद है ।
उत्कृष्ट स्थितिवाले निषेकोंके सिवा शेष सब निषेक अनुकृष्ट स्थितिविभक्ति कहलाते हैं । तथा सब स्थितिवाले निषेकोंमें से किसी एक निषेकके निकाल देने पर शेष स्थितियां नोसर्वस्थितिविभक्ति कहलाती हैं । इस लिये इनके कथनमें पुनरुक्त दोष नहीं है यह सिद्ध होता है । इसी प्रकार अनाहार मार्गणातक जानना चाहिये ।
९४०३ जघन्य स्थितिविभक्ति और अजघन्य स्थितिविभक्ति अनुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - निर्देश और आदेशनिर्देश । उनमें से ओधकी अपेक्षा सबसे जघन्य स्थितिको जघन्य स्थितिविभक्ति कहते हैं और इसके ऊपर अजघन्य स्थिति विभक्ति होती है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org