Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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नगा ।
गा• २२] हिदिविहत्तीए वड ढीए कालो
१७५ असंखेज्जभागहाणी० के० खे० पो० ? लोग. असंखे०भागो अह-बारहचोद्दस० देसूणा । सम्मामि० वेदय भंगो ।
३१८. संजदासंजद० असंखे०भागहाणी० के० खे० पो० ? लोग० असंख०भागो छचोद्दस० देसूणा । संखे भागहाणी० खेत्तभंगो ।
एवं पोसणाणुगमो समत्तो । - ३१६. कालाणुगमेण दुविहो णिद्देसो-ओघेण आदेसेण य । तत्थ ओघेण असंखे०भागवड्डी-हाणी-अवहा० केवचिरं ? सव्वद्धा । दोवडी० दोहाणी० के० ? ज. एगसमओ, उक्क० श्रावलि० असंखो भागो। असंखो०गुणहाणी० जह० एगसमझो, उक्क० संखोज्जा समया । एवं कायजोगि०-ओरालि०-णस०-चत्तारिक०-अचक्खु०-भवसि०आहारि त्ति । आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। सासादनसम्यग्दृष्टियोंमें असंख्यातभागहानिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका तथा सनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ और कुछ कम बारह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। सम्यग्मिथ्याष्टियों के वेदकसम्यग्दृष्टियोंके समान स्पर्श जानना चाहिये ।
३१८. संयतासंयतोंमें असंख्यात भागहानिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका और बसनालीके चौदह भागोंमें से कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है । तथा इनके संख्यात भागहानिकी अपेक्षा स्पर्श क्षेत्रके समान है।
इस प्रकार स्पर्शनानुगम समाप्त हुआ। ९३१६. कालानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-अोघनिर्देश और श्रादेशनिर्देश । उनमें से ओघकी अपेक्षा असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भागहानि और अवस्थितविभक्तिवाले जीवोंका कितना काल है ? सर्वकाल है। दो वृद्धि और दो हानिवाले जीवोंका कितना काल है ? जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलीके असंख्यातवें भागप्रमाण है। तथा असंख्यात गुणहानिवाले जीवोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। इसी प्रकार काययोगी, औदारिककाययोगी, नपुंसकवेदवाले, क्रोधादि चारों कषायवाले, अचक्षुदर्शनवाले, भव्य और आहारक जीवोंके जानना चाहिये।
विशेषार्थ-यहां नाना जीवोंकी अपेक्षा कालका विचार किया जा रहा है। तदनुसार ओघसे असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भागहानि और अवस्थित स्थितिवाले जीव अनन्त हैं अतः इनका सद्भाव सर्वदा पाया जाता है । संख्यात भागवृद्धि और संख्यात गुणवृद्धि तथा संख्यात भागहानि और संख्यात गुणहानि इनके निरन्तर रहने का जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है. अतः इनका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल असंख्यातवें भागप्रमाण कहा। तथा असंख्यात गुणहानि अनिवृत्ति क्षपकके ही होती है और अनिवृत्ति क्षपकके इसके निरन्तर प्राप्त होनेका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है, अतः असंख्यात'गुणहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल तत्प्रमाण बतलाया। यह ओघ प्ररूपणा काययोगी आदि कुछ मार्गणाओं में अवकिल बन जाती है, अतः उनकी कथनी ओघके समान कही।
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