Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [द्विदिविहत्ती ३ भंगो । उवसम० असंखे भागहाणी० के० १ जह० अंतोमुहुत्त, उक्क० पलिदो० असंखे०भागो । संखे०भागहाणी० जह० एगसमओ, उक्क० आवलि० असंख०भागो । सासण. असंख०भागहाणी० के० ज० एगसमओ, उक्क० पलिदो० असंखे०भागो। सम्मामि० असंखे०भागहाणी० जह• एगसमो, उक्क० पलिदो० असंखे० भागो । सेसपदाणमोहिभंगो।
एवं कालाणुगमो समत्तो । ३२८ अंतराणुगमेण दुविहो णिद्देसो—ोघेण आदेसेण य । तत्त्थ ओघेण. असंखे० भागवड्डी-हाणी-अवहि० णत्थि अंतरं । दो वड्डी-हाणी. अंतरं के० ? जह० एगसमओ, उक्क० अंतोमु० । असंख०गुणहाणी० अंतरं के० ? जह० एगसमो, उक० छ मासा । एवं कायजोगि० - ओरालि०-णवुस०-चत्तारिक०-अचक्खु०-भवसि०. आहारि त्ति । णवरि णवुसयवेदे असंखे० गुणहाणी० उक्क० अंतरं वासपुधत्त । कोध-माण-माया-लोभाणं वार्स सादिरेयं । है। तथा इनके शेष पदोंकी अपेक्षा काल अभिनिबोधिकज्ञानियोंके समान है। उपशमसम्यग्दृष्टियोंमें असंख्यातभागहानिवाले जीवोंका कितना काल है ? जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है। तथा संख्यातभागहानिवाले जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलीके असंख्यातवें भागप्रमाण है। सासादनसम्यग्दृष्टियोंमें असंख्यातभागहानिवाले जीवोंका कितना काल है ? जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है । सम्यग्मिध्यादृष्टियोंमें असंख्यातभागहानिवाले जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है। तथा शेष पदोंकी अपेक्षा काल अवधिज्ञानियोंके समान है।
इस प्रकार कालानुगम समाप्त हुआ। ६३२८. अन्तरानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश । उनमेंसे ओघकी अपेक्षा असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थितविभक्तिवाले जीवोंका अन्तरकाल नहीं है । दो वृद्धि और दो हानिवाले जीवोंका अन्तरकाल कितना है ? जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है। तथा असंख्यातगुणहानिवाले जीवोंका अन्तरकाल कितना है ? जघन्य अन्तरकाल, एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल छह महीना है। इसी प्रकार काययोगी, औदारिककाययोगी, नपुंसकवेदवाले, क्रोधादि चार कषायवाले, अचक्षुदर्शनवाले भव्य और, आहारक जीवोंके जानना चाहिये । इतनी विशेषता है नपुसकवेदमें असंख्यातगुणहानिका उत्कृष्ट अन्तरकाल वर्षपृथक्त्व है और क्रोध, मान, माया और लोभमें असंख्यातगुणहानिका उत्कृष्ट अन्तरकाल साधिक एक वर्ष है।
विशेषार्थ-असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थितका काल सर्वदा है अतः इनका अन्तरकाल नहीं पाया जाता। संख्यातभागवृद्धि, संख्यातगुणवृद्धि, संख्यातभागहानि
और संख्यातगुणहानि ये कमसे कम एक समयके बाद और अधिकसे अधिक अन्तमुहूर्त कालके बाद नियमसे प्राप्त होती हैं, अतः इनका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तमुहूर्त कहा। तथा असंख्यातगुणहानि क्षपकश्रेणीमें ही होती है और इसका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर क्रमशः एक समय और छह महीना प्रमाण है, अतः असंख्यातगुणहानिका जघन्य
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