Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२ ]
द्विदिविहत्तीए वड्ढीए अप्पाबहुअं
१ ३४१ (जइव सहारियो उ समसम्माइद्विकालम्मि अणंताणुबंधिविसंजोयणमिच्छदित साहिप्पारण संखे ० भागहाणी लभदि सा एत्थ कत्थ वि वृत्ता कत्थ विण बुत्ता तेण थप्पं काऊ एत्थ संखेज्जभागहाणी वत्तव्वा । अथवा उवसमसेढीए दंसणतियस्स हिदिघादसंभव पक्वमस्सियूण उवसमसम्माइडिम्म सव्वत्थ संखेज्जभागहाणी शिव्विसंकमणुगंतव्वा । सासण० असंखे० भागहा० ज० एयसमओ, उक्क पलिदो ०. संखे० भागो । एवं सम्मामि० । वरि पदभेदो अत्थि ।
एवमंतराणुगमो समत्तो ।
९ ३४२ भावाणुगमेण सव्वत्थ सव्वपदाणं को भावो ? ओदइओ भावो । एवं भावानुगमो समत्तो ।
९ ३४३. अप्पा हुगागमेण दुविहो सो - ओघेण आदेसेण य । तत्थ श्रघेण सव्वत्थोवा असंखे० गुणहाणि विहत्तिया जीवा । संखे० गुणहाणिविह० जीवा असं ० गुणा । संखे० भागहाणिवि० ज वा संखे० गुणा । संखे० गुंगवड्ढि वि० जीवा असंखेज्जगुणा । संखेज्जभागवडिवि० जीवा संखेज्जगुणा । असंखेज्जभागवड्ढि ० जीवा अतगुणा । अवद्विदवि० जीवा असंखे० गुणा । असंखे ० भागहारिणविहत्तिया
९ ३४१ यतिवृषभ आचार्य उपशमसम्यग्दृष्टि के काल में अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजना स्वीकार करते हैं, अतः इनके अभिप्राय से उपशम सम्यग्दृष्टियों के संख्यातभागहानि प्राप्त होती है । वह यहाँ कहीं पर कही गई है और कहीं पर नहीं कही गई है, इसलिये इसे स्थगित करके यहाँ पर संख्यात भागहानि कहनी चाहिये । अथवा उपशमश्रेणिमें तीन दर्शनमोहनीयका स्थितिघात संभव है, अतः इस पक्षका आश्रय करके उपशमसम्यग्दृष्टिके सर्वत्र संख्यात भागहानि निःशंक जाननी चाहिये । सासादनसम्यग्दृष्टियों में असंख्यात भागहानिवाले जीवोंका जधन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है । इसी प्रकार सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवों के कहना चाहिये । इतनी विशेषता है कि इनके पद विशेष पाये जाते हैं । अर्थात् सासादन में असंख्यात भागहानि पद है और सम्यग्मिथ्यात्व में असंख्यात भागहानि, संख्यात भागहानि और संख्यातगुणहानि इस प्रकार ये तीन पद हैं।
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इस प्रकार अन्तरानुगम समाप्त हुआ ।
$ ३४२. भावानुगमकी अपेक्षा सर्वत्र सभी पदोंकी अपेक्षा क्या भाव है । औदयिकभाव है । इस प्रकार भावानुगम समाप्त हुआ ।
९ ३४३, अल्पबहुत्वानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है। ओघ निर्देश और आदेश निर्देश | उनमें से ओकी अपेक्षा असंख्यातगुणहानिवाले जीव सबसे थोड़े हैं । इनसे संख्यातगुणहानिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे संख्यात भागहानिवाले जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे संख्यातगुणवृद्धिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे संख्यात भागवृद्धिवाले जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे श्रसंख्यातभागवृद्धिवाले जीव अनन्तगुणे हैं। इनसे अवस्थितविभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे
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