Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे . [हिदिविहत्ती ३ वेउब्विय० सव्वपदवि० के० खे० पो० ? लोग० असंखे०भागो अह-तेरहचोदस० देसूणा । ओरालि० तिरिक्खोघं । एवं णवूस० ।
३१५. मदि-सुदअण्णा० अोघं । णव रि असंखेज्जगुणहाणी णत्थि । एवमसंजद०-अभव०-मिच्छादिहि त्ति । विहंग० पंचिंदियभंगो। णवरि असंखेज्जगुणहाणी णत्थि । आभिणि-सुद०-अोहि० तिणि हाणी० के० खे० पो० ? लोग० असंखे० भागो अहचोद्दस० देमणा । असंखे०गुणहाणी ओघं। एवमोहिदंस सम्मादिहि त्ति । एवं वेदय० । णवरि असंखेज्जगुणहाणी णत्थि ।
३१६. तेउ. सोहम्मभंगो । पम्म० सहस्सारभंगो । सक्क० तिण्णिहाणी के. खे० पोसिदं ? लोग० असंखे भागो छच्चोदस० देसूगा । असंखेज्जगुणहाणी० ओघं ।
३१७. खइथ० असंखे०भागहाणी० के० ख० पो० ? लो० असं० भागो । अहचौदस० देसूणा । सेसपदाणं खेत्तभंगो। उवसम० असंखे० भागहाणी० संख०भागहाणी० के० खे० पो० ? लोग० असंखे०भागो अहचोदस० देसूणा । सासण. काययोगियोंमें सभी पदवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका और त्रस नालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ और कुछ कम तेरह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है । औदारिककाययोगियोंके स्पर्श सामान्य तिर्याञ्चोंके समान जानना चाहिये। इसी प्रकार नपुंसकवेदी जीवोंके जानना चाहिये।
३१५. मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी जीवोंके अोधके समान जानना चाहिये। इतनी विशेषता है कि इनके असंख्यातगुणहानि नहीं पाई जाती है। इसी प्रकार असंयत, अभव्य और मिथ्यादृष्टि जीवोंके जानना चाहिये । विभंगज्ञानियोंके पंचेन्द्रियोंके समान स्पर्श है । इतनी विशेषता है कि इनके असंख्यातगुणहानि नहीं पायी जाती है। आभिनिबोधिकज्ञानी, अतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें तीन हानिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। तथा इनके असंख्यातगुणहानिको अपेक्षा स्पर्शन अोधके समान है। इसी प्रकार अवधिदशेनवाले और सम्यग्दृष्टि जीवोंके जानना चाहिये । तथा इसी प्रकार वेदकसम्यग्दृष्टि जीवोंके जानना चाहिये। इतनी विशेषता है कि इनके असंख्यातगुणहानि नहीं पाई जाती है।
६३१६. पीतलेश्यावालोंके सौधर्म कल्पके समान स्पर्शन है। पद्मलेश्यावालोंके सहस्त्रार कल्पके समान स्पर्श है । तथा शुक्ललेश्यावालोंमें तीन हानिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका और त्रसनालीके चौदह भागोंमें से कुछ कम छह भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। तथा इनके असंख्यातगुणहानिकी अपेक्षा स्पर्शन श्रोधके समान है।
६ ३१७. क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंमें असंख्यातभागहानिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका और त्रसनालीके चौदह भागोंमें से कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। तथा इनके शेष पदोंकी अपेक्षा स्पर्शन क्षेत्रके समान है। उपशमसम्यग्दृष्टियोंमें असंख्यातभागहानि और संख्यातभागहानिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका और त्रसनालोके चौदह भागोंमें से कुछ कम
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