Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [द्विदिबिहत्ती ३ ३०५. खइय० असंखज्जभागहाणी० के० ? असंखेज्जा । सेसपदा संखेज्जा । वेदग० तिणि हाणी० के० ? असंखेज्जा । उवसम० दो हाणी० असंखेज्जा । सासण. असंखे०भागहाणी० केत्ति० ? असंखेज्जा। सम्मामि० तिण्णि हाणी. वेदय भंगो।
एवं परिमाणाणुगमो समत्तो। ३०६. खेत्ताणुगमेण दुविहो णिसो-ओघेण श्रादेसेण य । तत्थ ओघेण असंखे भागवडी हाणी अवहि० केवडि खोने ? सव्वलोगे । सेसपदा केवडि खोते ? लोग० असंखोज०भागे । एवमणंतरासीणं ।
३०७. पुढवी-बादरपुढवी-बादरपुढवीअपज्ज०-सुहुमपुढवी-मुहुमपुढवीपज्जत्तापज्जत्त-आउ०-बादरग्राउ०-बादर प्राउअपज्ज०-सुहुमआउ०-सु हुमाउपज्जत्तापज्जत्त. तेउ०-बादरतेउ०-बादरतेउअपज्ज-मुहुमतेउ०-सुहुमतेउपज्जत्तापज्जत्त-वाउ०-बादरवाउ०-बादरवाउअपज्ज०-सुहुमवाउ०-सुहुमवाउपज्जत्तापज्जत्त० असंखेज्जभागवड्डीहाणी अवहि० केवडि खेचे ? सव्वलोगे । सेसपदा० के० ? लोग० असंखोज्ज०भागे। सेससंखेज्जासंखेज्जरासीणं सव्वपदा लोगस्स असंखे भागे । णवरि बादरवाउ
६३०५. क्षायिकसम्यग्दृष्टियों में असंख्यात भागहानिवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। तथा शेष पदवाले जीव संख्यात हैं। वेदकसम्यग्दृष्टियोंमें तीन हानिवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। उपशमसम्यग्दृष्टियोंमें दो हानिवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। सासादनसम्यम्हष्टियोंमें असंख्यात भागहानिवाले जाव कितने हैं ? असंख्यात हैं। सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंमें तीन हानिवाले जीवोंका प्रमाण वेदकसम्यग्दृष्टियोंके समान है।
इस प्रकार परिमाणानुगम समाप्त हुआ। ६३०६. क्षेत्रानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश । उनमेंसे ओघकी अपेक्षा असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भागहानि और अवस्थितविभक्तिवाले जीव कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? सर्व लोकमें रहते हैं। शेष पदवाले जीव कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रमें रहते हैं। इसी प्रकार अनन्त संख्यावाली राशियोंके कहना चाहिये।
६३०७. पृथिवीकायिक, बादरपृथिवीकायिक, बादरपृथिवीकायिक अपर्याप्त, सूक्ष्मपृथिवीकायिक, सूक्ष्मपृथिवीकायिक पर्याप्त, सूक्ष्म पृथिवीकायिक अपर्याप्त, जलकायिक, बादर जलकायिक, बादर जलकायिक अपर्याप्त, सूक्ष्म जलकायिक, सूक्ष्म जलकायिक पर्याप्त, सूक्ष्म जलकायिक अपर्याप्त, अग्नि कायिक, बादर अग्निकायिक, बादर अग्निकायिक अपर्याप्त, सूक्ष्म अग्निकायिक, सूक्ष्म अग्निकायिक पर्याप्त, सूक्ष्म अग्निकायिक अपर्याप्त, वायुकायिक, बादरवायुकायिक, बादर वायुकायिक अपर्याप्त, सूक्ष्म वायुकायिक, सूक्ष्म वायुकायिक पर्याप्त और सक्ष्म वायकायिक अपर्याप्त. जीवोंमें असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भागहानि और अवस्थित विभक्तिवाले जीव कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? सब लोकमें रहते हैं। तथा शेष पदवाले जीव कितने क्षेत्र में रहते हैं ? लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्रमें रहते हैं। शेष संख्यात और असंख्यात संख्यावाली राशियोंकी अपेक्षा सभी पदवाले जीव
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