Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ द्विदिविहत्ती ३
मुवसम० संजदासंजदाणं । सव्व असंखे० भागहाणी ० सव्वजी० के० १ संखे ०भागा । संखे० भागहाणी० सव्वजी० के० ? संखे० भागो । एवं परिहार० ।
२८. आभिणि० - सुद० - ओहि० असंखे० भागहाणी० सव्वजी० के० ? असंखेज्जा भागा | सेसपदा असंखे० भागो । एवमोहिदंस० - मुक्क० सम्मादि० खइय०वेदय० - सम्मामिच्छादिडि त्ति । आहार० - आहार मिस्स ० - अकसा० - जहाक्खाद ०सास सम्मादिहीणं णत्थि भागाभागं ।
एवं भागाभागानुगमो समत्तो ।
९ २६६. परिमाणागमेण दुविहो गिद्देसो- ओघेण आदेसेण य । तत्थओघेण असंखे०भागवडी हाणी० अवद्वि० केत्तिया ! अनंता । दोवड्डी० दोहाणी० के० ? असंखेज्जा । असंखे० गुणहाणी० केत्ति ० १ संखेज्जा । एवं कायजोगि०ओरालि० एवं स ० - चत्तारिकसाय - अचक्खु ० - भवसि ० - आहारि त्ति ।
$ ३०० आदेसेण णेरइएस सव्वपदा के त्ति ० १ असंखेज्जा । एवं सव्वणेरइयसव्वपंचिंदियतिरिक्ख-मणुस अपज्ज •- -देव-भवणादि जाव सहस्सार ० - सव्वविगलिंदिय-पंचिंदियअपज्ज० - चत्तारिकाय- बादरवणप्फ दिपत्तेय० - तस्सेव
पज्जत्तापज्ज०
जीवों के जानना चाहिये । सर्वार्थसिद्धि के देवोंमें असंख्यात भागहानिवाले जीव उक्त सभी जीवोंके कितने भाग हैं ! संख्यात बहुभाग हैं । संख्यात भागहानिवाले जीव उक्त सभी जीवोंके कितने भाग हैं ? संख्यातवें भाग हैं। इसी प्रकार परिहारविशुद्धि संगत जीवोंके जानना चाहिये।
२८. आभिनिवोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवों में असंख्यात भागहानिवाले जीव उक्त सभी जीवोंके कितने भाग हैं ? असंख्यात बहुभाग हैं । तथा शेष पदवाले जीव असंख्यातवें भाग हैं । इसी प्रकार अवधिदर्शनवाले, शुक्ललेश्यावाले, सम्यग्दृष्टि, क्षायिक सम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवों के जानना चाहिये। आहारककाययोगी, आहारकमिश्रकाययोगी, अकषायी, यथाख्यातसंयत और सासादनसम्यग्दृष्टियों के भागाभाग नहीं है ।
इस प्रकार भागाभागानुगम समाप्त हुआ ।
९ २६६. परिमाणानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - ओघ निर्देश और देश निर्देश | उनमें से की अपेक्षा असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भागहानि और अवस्थितविभक्तिवाले जीव कितने हैं ? अनन्त हैं । दो वृद्धियों और दो हानियोंवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं । तथा असंख्यात गुणहानिवाले जीव कितने हैं ? संख्यात हैं । इसी प्रकार काययोगी, औदारिककाययोगी. नपुंसक वेदवाले, क्रोधादि चारों कषायवाले, अचतुदर्शनवाले, भव्य और आहारक जीवों के जानना चाहिये ।
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९ ३००. आदेशकी अपेक्षा नारकियों में सभी पदवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं । इसी प्रकार सभी नारकी, सभी पचेन्द्रिय तिर्यंच, मनुष्य अपर्याप्त सामान्य देव, भवनवासियोंसे लेकर सहस्रार स्वर्ग तक के देव, सभी विकलेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय अपर्याप्त, पृथिवीकायिक आदि चार स्थावर
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