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________________ १६६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ द्विदिविहत्ती ३ मुवसम० संजदासंजदाणं । सव्व असंखे० भागहाणी ० सव्वजी० के० १ संखे ०भागा । संखे० भागहाणी० सव्वजी० के० ? संखे० भागो । एवं परिहार० । २८. आभिणि० - सुद० - ओहि० असंखे० भागहाणी० सव्वजी० के० ? असंखेज्जा भागा | सेसपदा असंखे० भागो । एवमोहिदंस० - मुक्क० सम्मादि० खइय०वेदय० - सम्मामिच्छादिडि त्ति । आहार० - आहार मिस्स ० - अकसा० - जहाक्खाद ०सास सम्मादिहीणं णत्थि भागाभागं । एवं भागाभागानुगमो समत्तो । ९ २६६. परिमाणागमेण दुविहो गिद्देसो- ओघेण आदेसेण य । तत्थओघेण असंखे०भागवडी हाणी० अवद्वि० केत्तिया ! अनंता । दोवड्डी० दोहाणी० के० ? असंखेज्जा । असंखे० गुणहाणी० केत्ति ० १ संखेज्जा । एवं कायजोगि०ओरालि० एवं स ० - चत्तारिकसाय - अचक्खु ० - भवसि ० - आहारि त्ति । $ ३०० आदेसेण णेरइएस सव्वपदा के त्ति ० १ असंखेज्जा । एवं सव्वणेरइयसव्वपंचिंदियतिरिक्ख-मणुस अपज्ज •- -देव-भवणादि जाव सहस्सार ० - सव्वविगलिंदिय-पंचिंदियअपज्ज० - चत्तारिकाय- बादरवणप्फ दिपत्तेय० - तस्सेव पज्जत्तापज्ज० जीवों के जानना चाहिये । सर्वार्थसिद्धि के देवोंमें असंख्यात भागहानिवाले जीव उक्त सभी जीवोंके कितने भाग हैं ! संख्यात बहुभाग हैं । संख्यात भागहानिवाले जीव उक्त सभी जीवोंके कितने भाग हैं ? संख्यातवें भाग हैं। इसी प्रकार परिहारविशुद्धि संगत जीवोंके जानना चाहिये। २८. आभिनिवोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवों में असंख्यात भागहानिवाले जीव उक्त सभी जीवोंके कितने भाग हैं ? असंख्यात बहुभाग हैं । तथा शेष पदवाले जीव असंख्यातवें भाग हैं । इसी प्रकार अवधिदर्शनवाले, शुक्ललेश्यावाले, सम्यग्दृष्टि, क्षायिक सम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवों के जानना चाहिये। आहारककाययोगी, आहारकमिश्रकाययोगी, अकषायी, यथाख्यातसंयत और सासादनसम्यग्दृष्टियों के भागाभाग नहीं है । इस प्रकार भागाभागानुगम समाप्त हुआ । ९ २६६. परिमाणानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - ओघ निर्देश और देश निर्देश | उनमें से की अपेक्षा असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भागहानि और अवस्थितविभक्तिवाले जीव कितने हैं ? अनन्त हैं । दो वृद्धियों और दो हानियोंवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं । तथा असंख्यात गुणहानिवाले जीव कितने हैं ? संख्यात हैं । इसी प्रकार काययोगी, औदारिककाययोगी. नपुंसक वेदवाले, क्रोधादि चारों कषायवाले, अचतुदर्शनवाले, भव्य और आहारक जीवों के जानना चाहिये । 1 ९ ३००. आदेशकी अपेक्षा नारकियों में सभी पदवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं । इसी प्रकार सभी नारकी, सभी पचेन्द्रिय तिर्यंच, मनुष्य अपर्याप्त सामान्य देव, भवनवासियोंसे लेकर सहस्रार स्वर्ग तक के देव, सभी विकलेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय अपर्याप्त, पृथिवीकायिक आदि चार स्थावर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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