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________________ ग २२ ] द्विदिविहत्तीए वड्ढीए परिमाणाणुगमो १६७ तसअपज्ज०-वेउव्विय०-वेउब्धिय मिस्स-विहंग-तेउ०-पम्मलेस्से त्ति । ३०१. तिरिक्खा ओघं । णवरि असंखे गुणहाणी णत्थि। एवमेइंदियसव्ववणफदि०-ओरालियमिस्स०-कम्मइय०-मदि-सुदअण्णाण०-असंजद-तिण्णले०अभव०-मिच्छादिहि-असण्णि-अणाहारि त्ति । ३०२. मणुस्सेसु णिरोघं । णवरि असंखे गुणहाणी. संखेजा। एवं पंचिंदिय-पंचिं०पज्ज०-तस-तसपज्ज०-पंचमण-पंचवचि०-इत्थि०-पुरिस०-चक्खु०सण्णि त्ति । मणुस्सपज्ज०-मणुस्सिणीसु सव्वपद० के० ? संखेज्जा। एवं सवढ०अबगद०-मणपज्ज०-संजद०-सामाइय-छेदो०-परिहार०-सुहुमसांपराय० । $ ३०३. आणदादि जाव अवराजिदा ति असंखे०भागहाणी संखे०भागहाणी केत्ति० ? असंखज्जा । [एवं संजदासंजद । आहार०-] आहार मिस्स० असंख० भाग हाणी० केत्ति० ? संखेज्जा । एवमकसाय०-जहाक्रवाद०त्ति । ३०४. आभिणि-सुद०-ओहि तिण्णि हाणि० केत्तिया ? असंखेज्जा। असंखे०गुणहाणी. संखज्जा ? एवमोहिदंस०-सुक्क०-सम्मादिहि त्ति ।। काय, बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर तथा इनके पर्याप्त और अपर्याप्त, त्रस अपर्याप्त, वैक्रियिककाययोगी, वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, विभंगज्ञानी, पीतलेश्यावाले और पद्मलेश्यावाले ‘जीवोंके जानना चाहिये। ३०१. तियचोंमें असंख्यातभागवृद्धि आदिकी अपेक्षा संख्या ओघके समान है। इतनी विशेषता है कि इनमें असंख्यात गुणहानि नहीं है। इसी प्रकार एकेन्द्रिय, सभी वनस्पतिकायिक, औदारिकमिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, असंयत, कृष्णादि तीन लेश्यावाले, अभव्य, मिथ्यादृष्टि, असंज्ञी और अनाहारक जीवोंके जानना चाहिये । ६३०२. मनुष्योंमें असंख्यात भागवृद्धि आदिकी अपेक्षा संख्या सामान्य नारकियोंके समान है । इतनी विशेषता है कि इनमें असंख्यात गुणहानिवाले जीव संख्यात हैं। इसी प्रकार पंचेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय पर्याप्त, स, त्रसपर्याप्त, पांचों मनोयोगी, पांचों वचनयोगी, स्त्रीवेदवाले, पुरुषवेवाले, चक्षुदर्शनवाले और संज्ञी जीवोंके जानना चाहिये । मनुष्य पर्याप्तक और मनुष्यनियों में सभी पदवाले जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। इसी प्रकार सर्वार्थसिद्धिके देव, अपगतवेदवाले, मनःपर्ययज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत, परिहारविशुद्धिसंयत और सूक्ष्मसांपरायिकसंयत जीवोंके जानना चाहिये । ३०३. आनतकल्पसे लेकर अपराजित तकके देवों में असंख्यात भागहानि और संख्यात भागहानिवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। इसी प्रकार संयतासंयत जीवोंके जानना चाहिए। आहारककाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगियोंमें असंख्यात भागहानिवाले जीव कितने हैं ? संख्यात हैं । इसी प्रकार अकषायी और यथाख्यातसंयत जीवोंके जानना चाहिये। $ ३०४. आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रतज्ञानी और अवधिज्ञानियोंमें तीन हानिवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं । तथा अख्यांतगुणहानिवाले जीव संख्यात हैं। इसी प्रकार अवधिदर्शनवाले, शुक्ललेश्यावाले और सम्यग्दृष्टि जीवोंके जानना चाहिये । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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