Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२ ]
द्विदिविहत्तीए वड ढीए भागाभागो
अभवसि ०-मिच्छादिद्वि० असण्णि० - आहारि० - अणाहारिति ।
$ २६६. आदेसेण णेरइएस अवधि० सव्वजी० के० ९ संखेज्जदिभागो । संखे० भागहाणी० सव्वजी० के० १ संखेज्जा भागा। सेसपदा सव्वजीवाणं के० १ असंखे० भागो । एवं सत्तसु पुढवीसु सव्वपंचिंदियतिरिक्ख-मणुस्स- मणुस अपज्जत्तदेव-भवणादि जावं सहस्सार० सव्वविगलिंदिय-सव्व पंचिदिय - चत्तारिकाय- बादरसुहुम-पज्जत्तापज्जत - बादरवणफदि ० पत्तेय ०-सव्वतस००- पंचमण० - पंचवचि ० [वेउव्वि०-] वेउव्वियमिस्स०-इत्थि - पुरिस०- विहंग० - चक्खु०-ते उ०- पम्म० सण्णि त्ति । मणुसपज्ज०मणुसिणीस्रु असंखे०भागहाणी० सव्वजी० के० ? संखेज्जा भागा । सेसपदा संखेज्जदिभागो । एवमवगद ० -मणपज्ज० -संजद ० - सामाइय-छेदो ० -सुहुम० संजदेति ।
६ २६७. आणदादि जाव अवराइदे त्ति असंखे० भागहारिणी० सव्वजी० के० ? असंखेज्जा भागा। संखे० भागहाणी • सव्वजी० के० ? असंखे० भागो । एवतीन लेश्यावाले, भव्य, अभव्य, मिथ्यादृष्टि असंज्ञी, आहारक और अनाहारक जीवों के जानना चाहिये |
विशेषार्थ - यहां तिर्यंच आदि अन्य मार्गणाओं में जो ओके समान भागाभाग जानने की सूचना की सो उसका यह अभिप्राय नहीं कि इन सब मार्गणाओं में सब पदोंकी अपेक्षा ओघ के समान भागाभाग बन जाता है । किन्तु इसका इतना ही अभिप्राय है कि जहां जितने पद सम्भव हों उनकी अपेक्षा भागाभाग ओघ के समान ही जानना । तथा जहां जो पद न हो उसकी अपेक्षा भागाभागका कथन नहीं करना। आगे भी इसी प्रकार विचार करके यथासम्भव भागाभाग जानना चाहिये |
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§ २६६. आदेशनिर्देशकी अपेक्षा नारकियों में अवस्थितविभक्तिवाले जीव सभी नारकियों के कितने भाग हैं ? संख्यातवें भाग हैं । असंख्यात भागहानिवाले जीव सभी नारकियोंके कितने भाग हैं । संख्यात बहुभाग हैं। शेष पदवाले जीव सभी नारकियोंके कितने भाग हैं ? असख्यातवें भाग हैं। इसी प्रकार सातों पृथिवियोंके नारकी, सभी पंचेन्द्रियतियँच, सामान्य मनुष्य, मनुष्य अपर्याप्त, सामान्य देव, भवनवासियोंसे लेकर सहस्रार कल्पतकके देव, सभी विकलेन्द्रिय, सभी पंचेन्द्रिय, पृथिवीकायिक आदि चार स्थावरकाय तथा इनके बादर और सूक्ष्म तथा बादर और सूक्ष्मोंके पर्याप्त और अपर्याप्त, बादर वनस्पतिकाधिक प्रत्येकशरीर, सभी त्रस, पांचों मनोयोगी, पांचों वचनयोगी, वैक्रियिककाययोगी, वैक्रियिकमिश्र काययोगी, स्त्रीवदवाले, पुरुषवेदवाले, विभंगज्ञानी, चतुदर्शनवाले, पीतलेश्यावाले, पद्मलेश्यावाले और संज्ञी जीवोंके जानना चाहिये । मनुष्य पर्याप्तक और मनुष्यनियों में असंख्यात भागहानिवाले जीव उक्त सभी जीवों के कितने भाग हैं ? संख्यात बहुभाग हैं। तथा शेष पदवाले जीव संख्यातवें भाग हैं। इसी प्रकार अपगतवेदवाले, मन:पर्ययज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत और सूक्ष्मसांपरायिक संयत जीवोंके जानना चाहिये ।
९ २६७ आनत कल्पसे लेकर अपराजित तक के देवों में असंख्यात भागहानिवाले जीव उक्त सभी जीवोंके कितने भाग प्रमाण हैं ? असंख्यात बहुभाग हैं । संख्यात भागहानिवाले जीव उक्त सभी जीवों कितने भाग हैं, असंख्यातवें भाग हैं। इसी प्रकार उपशमसम्यग्दृष्टि और संयतासंयत
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