Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२] . हिदिविहत्तीए वड ढीए भंगविचओं
१६३ ___२६२ मणुस्सअपज्ज० सव्वपदा भयणिज्जा । एवं वेउव्वियमिस्स०अवगद -सुहुम०-सम्मामि० । णवरि भंगा जाणिय वत्तव्या।
$ २६३. आणदादि जाव सव्वदृसिद्धि त्ति असंखेज्जभागहाणी णियमा अस्थि । सिया एदे च संखज्जभागहाणिविहत्तिो च । सिया एदे च संखे०भागहाणिविहत्तिया च । धुवसहिदा तिण्णि भंगा । एवं परिहार०-संजदासंजद० ।
8 २६४. आहार-आहारमिस्स० सिया असंखेज्जभागहाणिविहत्तिओ, सिया असंखे०भागहाणीविहत्तिया एवं दोण्णि भंगा २। एवमकसा०-जहाक्खाद०सासण० । आभिणि-सुद०-ओहिणाणीसु असंखेज्जभागहाणी णियमा अत्थि । सेसप्रकार है-मूलमें गिनाई हुई मार्गणाओंमेंसे सातों नरकके नारकी, पंचेन्द्रिय तिर्यंच, सामान्य देव, भवनवासियोंसे लेकर सहस्रार कल्पतकके देव, पंचेन्द्रिय अपर्याप्त, बस अपर्याप्त, वैक्रियिककाययोगी, विभंगज्ञानी, पीतलेश्यावाले और पद्मलेश्यावाले ये मार्गणाएं ऐसी हैं जिनमें सामान्य नार• कियोंके समान प्ररूपणा बन जाती है, अतः इनमें ध्र व भंग सहित कुल भंग २४३ होते हैं । सामान्य मनुष्य, पर्याप्त मनुष्य, मनुष्यनी, पंचेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय पर्याप्त, त्रस, बस पर्याप्त, पांचों मनोयोगी, पांचों वचनयोगी, स्त्रीवेदवाले, पुरुषवेदवाले, चक्षदर्शनी और संज्ञी ये मार्गणाएं ऐसी हैं जिनमें असंख्यात गुणहानि और पाई जाती है, अतः कुल आठ पदोंमेंसे भजनीय पद ६ हो जाते हैं अतः यहां ध्र व भंगके साथ कुल भंग ७२६ हो जाते हैं। विकलत्रयोंमें असंख्यात. भागवृद्धि, संख्यातभागवृद्धि तथा तीन हानि और अवस्थित इस प्रकार छह पद हैं। इनमेंसे चार अध्र व है, अतः यहां ध्र व भंगके साथ कुल भंग ८१ होते हैं। अब शेष रहीं पृथिवीकायिक पर्याप्त आदि मार्गणाएं सो उनमें असंख्यात भागवृद्धि, तीन हानि और अवस्थित इस प्रकार पांच पद हैं। इनमेंसे तीन अध्रुव हैं, अतः यहां ध्र व भंगके साथ कुल भंग २७ होते हैं।
२६२. मनुष्य अपर्याप्तकोंके सभी पद भजनीय हैं। इसी प्रकार वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, अपगतवेदी, सूक्ष्मसांपरायिकसयत और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंके जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि इनके भंग जानकर कहना चाहिये।
विशेषार्थ-लब्ध्यपर्याप्त मनुष्योंके असंख्यात गुणहानिके सिवा सात पद पाये जाते हैं और ये सब भजनीय हैं, अतः यहां ध्र व भंगके बिना कुल भंग २१८६ होंगे। इसी प्रकार वैक्रियिकमिश्रकाययोगमें २१८६ भंग जानना चाहिये । अपगतवेदी, सूक्ष्मसांपरायिकसंयत और सम्यग्मिथ्यादृष्टिके असंख्यातभागहानि, संख्यातभागहानि, और संख्यातगुणहानि ये तीन पद हैं तथा ये तीनों भजनीय हैं, अतः यहां २६ भंग होंगे।
२६३. आनतसे लेकर सर्वार्थसिद्धितकके देवोंमें असंख्यात भागहानिवाले जीव नियमसे हैं। तथा कदाचित् असंख्यात भागहानिवाले अनेक जीव हैं और संख्यातभागहानिवाला एक जीव है । कदाचित् असंख्यातभागहानिवाले अनेक जीव हैं और संख्यात भागहानिवाले अनेक जीव हैं। इस प्रकार ध्र व भंगसहित तीन भंग होते हैं। इसी प्रकार परिहारविशुद्धिसंयत और संयतासंयत जीवोंके जानना चाहिये।
६२६४. आहारककाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगी जीवोंमें कदाचित् असंख्यात भागहानिवाला एक जीव है और कदाचित् असंख्यातभागहानिवाले अनेक जीव हैं। इस प्रकार दो भंग हैं । इसी प्रकार अकषायी, यथाख्यातसंयत और सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंके जानना चाहिये । आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें असंख्यात भागहानिवाले जीव नियम
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