Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२ ]
हिदिविहत्तीए वड ढीए अंतरं
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अंतोमुहुत्तं, उक्क० तेत्तीसं साग० सादिरेयाणि । वेदय० असंखे ० भागहाणी ० आभिणि०भंगो । संखे० भागहाणी संखेज्जगुणहाणी जहराणुक० एगसमओ ।
९ २७२ सासण० असंखे ० भागहाणी ० जह० एगसमओ, उक्क० छ आवलियाओ । सम्मामि० असंखे ० भागहाणी जह० एयसमत्रो, उक्क० अंतमहुतं । वे हाणी ० वेदयभंगो । सण्णि० पंचिदियभंगो । असण्णि० दो बड्ढी संखे० गुणहाणी ० वडि० श्रघं । संखे० गुणवड्ढी संखे० भागहाणी जहरणुक्क० एगसमओ | असंखे० भागहाणी एइंदियभंगो | अभव० मदि० भंगो । आहारि ० दो वड्डी चत्तारि हाणी अव०ि ओघभंगो । संखे० गुणवड्ढी जहरपुक्क० एस० । अणाहारि० कम्मइय० भंगो |
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एवं कालानुगमो समत्तो ।
$ २७३. अंतरागमेण दुविहो णिद्द ेसो- ओघेण आदेसेण य । तत्थ ओघेण असंखेज्जभागवड्डी॰ अवहि० अंतरं केव० १ ज० एगसमओ, उक्क० तेवहिसागरोवमसदं अंतोमुहुत्तब्भहियतीहि पलिदोवमेहि सादिरेयं । दो वड्ढी० दो हाणी ० जह० एयसमओ अंतोमु०, उक्क० अनंतकालमसंखेज्जा पोरगलपरियट्टा । असंखे० भाग
जीवों जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि असंख्यात भागहानिका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल साधिक तेतीस सागर है । वेदकसम्यग्दृष्टि जीवों के असंख्यात भागहानिका काल आभिनिबोधिकज्ञानियोंके समान है । तथा संख्यात भागहानि और संख्यातगुणहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है ।
९ २७२. सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंके असंख्यात भागहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल छह आवली है । सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंके असंख्यात भागहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । तथा दो हानियोंका काल वेदकसम्यग्दृष्टियोंके समान है। संज्ञी जीवों के पंचेन्द्रियोंके समान जानना चाहिये । असंज्ञी जीवोंके दो वृद्धियों, संख्यात
हा और अवस्थितविभक्तिका काल ओघ के समान है । तथा संख्यातगुणवृद्धि और संख्यातभागहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है और असंख्यात भागहानिका काल एकेन्द्रियों के समान है । अभव्य जीवोंके मत्यज्ञानियोंके समान जानना चाहिये । आहारक जीवोंके दो वृद्धियों, चार हानियों और अवस्थितविभक्तिका काल के समान है तथा संख्यातगुणवृद्धिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अनाहारक जीवों के कार्मण काययोगियों के समान जानना चाहिये ।
इस प्रकार कालानुगम समाप्त हुआ ।
$ २७३. अन्तरानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - ओघ निर्देश और आदेशनिर्देश । उनमें से ओघकी अपेक्षा असंख्यात भागवृद्धि और अवस्थितविभक्तिका अन्तरकाल कितना है ? जघन्य अन्तर काल एक समय और उत्कृष्ट अन्तर काल अन्तर्मुहूर्त और तीन पल्योंसे अधिक एक सौ त्रेसठ सागर है । तथा दो वृद्धियों और दो हानियोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय और अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अनन्त काल है जो असंख्तात पुद्गल परिवर्तन प्रमाण
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