Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२]
हिदिविहत्तीए भुजगारे भागाभागागमो
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$ १६७. मणुस पज्ज० सव्वपदा भयणिज्जा । एवं वेचव्वियमिस्स० । आणदादि जाव सव्वत्ति अप्पद ० णियमा अत्थि । एवमाभिणि० - मुद० - ओहि ० - मणपज्ज०संजद० - सामाइयच्छेदो ० - परिहार० - संजदासंजद ० - ओहिदंस ० - सुक्क ० - सम्मादि ०खइय०-वेदएत्ति । आहार० - आहारमिस्स ० सिया अप्पदरविहत्तिओ च सिया अप्पदरविहत्तिया च । एवमवगद ० - अकसो०- सुहुम ० - जहाक्खाद ० उवसम० - सम्मामि० - सासणसम्मादिति ।
एवं णाणाजीवेहि भंगविचओ समत्तो ।
$ १६८. भागाभागानुगमेण दुविहो लिसो ओघेण आदेसेण य । तत्थ ओघेण भुज० सव्बजीव० के० भागो ? असंखे० भागो । अवद्वि० सव्वजी० के० १ संखे० भागो | पद० सव्वजीव० के० भागो ९ संखेज्जा भागा । एवं सत्तर पुढवीसु सव्वतिरिक्ख- मणुस - मणुसअपज्ज० देव भवणादि जाव सहस्सार- सव्व एइंदिय- सव्वविगलिं
१७. मनुष्य अपर्याप्तकों में सभी पद भजनीय हैं। इसी प्रकार वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीवों के जानना चाहिये । आनत कल्पसे लेकर सर्वार्थसिद्धि पर्यन्त अल्पतर स्थितिविभक्तिवाले जीव नियमसे हैं । इसी प्रकार मतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, मन:पर्ययज्ञानी, संयत सामायिक संयत, छेदोपस्थापनासंयत, परिहारविशुद्धिसंयत, संयतासंयत, अवधिदर्शनी, शुक्लश्यावाले, सम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि और वेदकसम्यग्दृष्टि जीवोंके जानना चाहिये। आहारककाययोगी और आहारक मिश्रकाययोगी जीवोंमें कदाचित् अल्पतर स्थितिविभक्तिवाला एक जीव होता है, कदाचित् अल्पतर स्थितिविभक्तिवाले अनेक जीव होते हैं। इसी प्रकार अपगतवेदी, अकषायी, सूक्ष्म सांपरायिकसंयत, यथाख्यातसंयत, उपशमसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि जीवों के जानना चाहिये ।
विशेषार्थ से भुजगार, अल्पतर और अवस्थित स्थितिविभक्तिवाले नाना जीव सर्वदा पाये जाते हैं । पर मार्गणाओं में विचार करनेपर कुछ मार्गणाएं ऐसी हैं जिनमें घ प्ररूपणा बन जाती है । कुछ मार्गणाएं ऐसी हैं जिनमें अल्पतर और अवस्थित स्थितिवाले नाना जीव तो नियमसे हैं तथा भुजगार स्थितिवाला कदाचित् एक जीव होता है और कदाचित् अनेक जीव होते हैं । इस प्रकार इन दो अध्रुव भंगों में पहला ध्रुवभंग मिला देनेपर तीन भंग हो जाते हैं । कुछ मार्गणाएं ऐसी हैं जिनमें तीनों पद भजनीय हैं। जैसे लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्य आदि । अतः यहां २६ भंग होंगे। कुछ मार्गणाएं ऐसी हैं जिनमें एक अल्पतर स्थितिवाले ही जीव होते हैं। और कुछ मार्गणाएं ऐसी हैं जिनमें अल्पतर स्थितिवाला कदाचित् एक जीव होता है और कदाचित् नाना जीव होते हैं। जैसे आहारक काययोगी आदि । अतः यहां दो भंग होंगे ।
इस प्रकार नानाजीवों की अपेक्षा भंगविचयानुगम समाप्त हुआ ।
$ १६८. भागाभागानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है— प्रोघनिर्देश और आदेशनिर्देश | उनमें से की अपेक्षा भुजगार स्थितिविभक्तिवाले जीव सब जीवोंके कितने भाग हैं ? असंख्यातवें भाग हैं । अवस्थित स्थितिविभक्तिवाले जीव सब जीवोंके कितने भाग हैं ? संख्यातवें भाग हैं । अल्पतर स्थितिविभक्तिवाले जीव सब जीवोंके कितने भाग हैं ? संख्यात बहुभाग हैं ।
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