Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिद कसायपाहुडे [हिदिविहत्ती ३ चत्तारिकसाय-मदि-सुदअण्णाण-विहंग०-असंजद०-चक्खु०.अचक्खु०-पंचले०-भवसि०अभवसि०-मिच्छादि०-सण्णि-आहारि त्ति ।
२३१. पंचिंतिरि०अपज्ज० उक्क० वड़ढी कस्स ? जेण तप्पाअोग्गजहण्णहिदि बंधमाणेण उक्कस्सिया हिदी पबद्धा तस्स उकस्सिया वड्ढी । तस्सेव से काले उक्कस्समवहाणं । उक्कस्सिया हाणी कस्स ? अण्णदरस्स जो तिरिक्खो मणुस्सो वा उक्कस्सहिदिसंतकम्मिओ हिदिघादं करमाणो पंचिंदियतिरिक्खअपज्जत्तएसु उववण्णो तेण उक्कस्सहिदिखंडगे हदे तस्स उक्कस्सिया हाणी | एवं मणुसअपज०पादरेइंदियअपज्ज०-मुहुमेइंदियपज्जत्तापज्जत्त-सव्वविगलिंदिय -पंचिंदियअपज्ज० - पंचकायाणं बादरअपज्ज०-सुहुमपज्जत्तापज्जत्त-[ तेउ०-] बादरतेउ०-बादरतेउपज्ज- वाउ०] बादरवाउ०-बादरवाउपज्ज-तसअपज्जचे त्ति ।
२३२. आणदादि जाव उवरिमगेवज्जो त्ति उक्कस्सिया हाणी कस्स ? अण्णदरो जो उक्कस्सहिदिसंतकम्मिश्रो तेण.पढमसम्म पडिवज्जमाणेण पढमहिदिखंडए पादिदे तस्स उक्क. हाणी । अणुद्दिसादि जाव सव्वदृसिद्धि ति उक्क० हाणी कस्स ? अण्णदरो जो अणंताणुबंधिचउक्कं विसंजोएमाणो तेण पढमहिदिखंडए पादिदे तस्स उक्क० हाणी। श्रुताज्ञानी, विभंगज्ञानी, असंयत, चक्षुदर्शनवाले, अचक्षुदर्शनवाले, कृष्णादि पांच लेश्यावाले, भव्य अभव्य, मिथ्यादृष्टि, संज्ञी और आहारक जीवोंके जानना चाहिये।
.६२३१. पंचेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्तकोंमें उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? तत्प्रायोग्य जघन्य स्थितिको बांधनेवाले जिस जीवने उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध किया है उसके उत्कृष्ट वृद्धि होती है । तथा उसीके तदनन्तर कालमें उत्कृष्ट अवस्थान होता है । उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? मोहनीय कर्मकी उत्कृष्ट स्थितिकी सत्तावाला जो तिर्यंच या मनुष्य स्थितिघातको करता हुआ पंचेन्द्रिय तियेच अपर्याप्तकोंमें उत्पन्न हुआ। फिर वहाँ उसके उत्कृष्ट स्थितिकाण्डकका घात करने पर उत्कृष्ट हानि होती है। इसी प्रकार मनुष्य अपर्याप्तक, बादर एकेन्द्रिय अपयाप्तक, सूक्ष्म एकेन्द्रिय, सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तक, सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तक, सभी विकलेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय अपर्याप्तक, पांचों स्थाबरकाय बादर अपर्याप्तक, पाँचों स्थावरकाय सूक्ष्म, पांचों स्थावरकाय सूक्ष्म पर्याप्तक, पाँचों स्थावरकाय सूक्ष्म अपर्याप्तक, अग्निकायिक, बादर अग्निकायिक, बादर अग्निकायिक पर्याप्तक, वायुकायिक, बादर वायुकायिक, बादर वायुकायिक पर्याप्तक और बस अपर्याप्तक जीवोंके जानना चाहिये।
६२३२. आनत कल्पसे लेकर उपरिम अवेयक तकके देवोंमें उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? जो मोहनीय कर्मकी उत्कृष्ट स्थितिकी सत्तावाला प्रथमोपशम सम्यक्त्वको प्राप्त करते समय जब प्रथम स्थितिकाण्डकका घात करता है तब उसके उत्कृष्ट हानि होती है। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धितकके देवोंमें उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी विसंयोजना करनेवाला जो कोई एक जीव जब प्रथम स्थितिकाण्डकका घात करता है तब उसके उत्कृष्ट हानि होती है।
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