Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
View full book text
________________
१३५
गा• २२]
द्विदिविहत्तीए पदणिक्खेवे अप्पाबहुलं यमिस्स-वेउव्विय मिस्स-असण्णि ति ।
२४३ आणदादि जाव सबढ० पत्थि अप्पाबहुगं । एवमाहार०-आहारमिस्स०-अवगद०-अकसा०-आभिणि-सुद--ओहि०-मणपज्ज०-संजद०-सामाइयछेदो०-परिहार-मुहुम० - जहाक्खाद०-संजदासंजद०-ओहिदंस०-मुक्क०-सम्मादि०खड्य०-चेदय०-उवसम०-सासण-सम्मामिच्छादिहि त्ति ।
२४४. एइंदिएसु सव्वत्थोवा वड्ढी अवडाणं च । हाणी असंखेजगुणा । एवं पंचकाय० । कम्मइय० सव्वत्थोवमवहाणं । वड्डी असंखेज्जगुणा । हाणी असंखेज्जगुणा । एवमणाहार० ।
एवमुक्कस्सप्पाबहुअं सम । $ २४५. जहण्णए पयदं । दुविहो णिद्द सो–ोघेण आदेसेण य । तत्य ओघेण जहणिया वड्डी हाणी अवहाणं च तिण्णि वि तुल्लाणि । एवं णेदव्वं जाव अणाहारए त्ति । आणदादिसु णत्थि अप्पाबहुअं, एगपदत्तादो ।
.. एवं पदणिक्खेवो समत्तो ।
vvvvvvvvirwwwvvv.
पंचेन्द्रिय अपर्याप्तक, बस अपर्याप्तक, औदारिकमिश्रकाययोगी, वैक्रियिकमिश्रकाययोगी और असंज्ञी जीवोंके जानना चाहिये ।
२४३. अानत कल्पसे लेकर सर्वार्थसिद्धितकके देवोंके अल्पबहुत्व नहीं है। इसी प्रकार आहारककाययोगी, आहारकमिश्रकाययोगी, अपगतवेदी, अकषायी, आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी. अवधिज्ञानी, मनःपर्थयज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत, परिहारविशुद्धिसंयत. सूक्ष्मसांपरायिकसंयत, यथाख्यातसंयत, संयतासंयत, अवधिदर्शनवाले, शुक्ललेश्यावाले, सम्यग्दृष्टि क्षायिकसम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि, उपशमसम्यग्दृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिध्यादृष्टि जीवोंके जानना चाहिये।
२४४. सभी एकेन्द्रियोंमें उत्कृष्ट वृद्धि और अवस्थानवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे उत्कृष्ट हानिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । इसी प्रकार सभी पाँचों स्थावरकाय जीवोंके जानना चाहिये। कार्मणकाययोगियोंमें अवस्थानवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे वृद्धिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे हानिवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इसी प्रकार अनाहारक जीवोंके जानना चाहिये।
इस प्रकार उत्कृष्ट अल्पबहुत्व समाप्त हुआ।
६२४५. अब जघन्य अल्पबहुत्वका प्रकरण है। उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका हैओघनिर्देश और आदेशनिर्देश। उनमेंसे ओघकी अपेक्षा जघन्य वृद्धि, जघन्य हानि और अवस्थान इन तीनोंवाले जीव समान हैं। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिये। किन्तु आनतादिकमें अल्पबहुत्व नहीं है, क्योंकि वहाँ एक हानिपद ही पाया जाता है।
इस प्रकार पदनिक्षेप समाप्त हुआ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org