Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२. ]
हिदिविहत्तीए पदणिक्खेवे सामित्तं
हिदिखंड पादिदे तस्स उक्क० हाणी अथवा कसायउवसामगस्स पढमडिदिखंडए पदिदे एवं सामित्तं वत्तव्वं, उवसमसम्मत्तकालब्भंतरे अनंतापु० विसंजोयणपक्खाणभुवगमादो | अथवा एदं पि जाणिय वत्तव्वं, उवसम सेढीए दंसणतियस्स डिदिघादसंभवावलंभादो | सम्मामि० उक्क० हाणी कस्स ? अण्ण० उक्कस हिदिसंतकम्मम्मि उक्कस्सडिदिखंडए पदिदे तस्स उक्कस्सिया हाणी |
एवमुकस्ससामित्तं समत्तं ।
९ २३६, जहण्णए पदं । दुविहो गिद्द सो- ओघेण आदेसेण य । तत्थ घेण जह० वड्ढी कस्स ? अण्ण० जो समऊण उकस्सहिदिं बंधमाणो उक्कस्ससंकिले सं गंतूण उकस्सहिदि पबद्धो तस्स जह० वड्ढी । जह० हाणी कस्स ? अण्ण • अधहिiraण । एगदरत्थ वद्वाणं । एवं सत्तसु पुढवीसु सव्वतिरिक्ख- सव्वमणुसदेव० भवणादि जाव सहस्सार० - सव्व एइंदिय० सव्वविगलिंदिय- सव्व पंचिंदिय-छकायपंचमण ० - पंचवचि०- कायजोगि - ओरालि० - ओरालिय मिस्स - वेउव्विय० - वेउ० मिस्स ०. कम्मइय-तिण्णिवेद ० चत्तारिकसाय - तिण्णि अण्णाण - असंजद ० - चक्खु०-अचक्खु०- पंचले०भवसि ० - अभवसि ०-मिच्छादि ० - सण्णि ० - असण्णि ० - हारिणाहारिति ।
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बन्धीकी विसंयोजनाके समय प्रथम स्थितिकाण्डकका घात करता है उसके उत्कृष्ट हानि होती है । अथवा कषायकी उपशमना करनेवाले उपशमसम्यग्दृष्टि जीवके प्रथम स्थितिखण्डका घात करने पर उत्कृष्ट हानिके स्वामित्वका कथन करना चाहिये, क्योंकि उपशमसम्यक्त्वके कालके भीतर अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजनाका पक्ष स्वीकर नहीं किया है । अथवा इसका भी जान कर ही कथन करना चाहिये, क्योंकि उपशमश्रेणी में दर्शनमोहनीयकी तीन प्रकृतियोंके स्थितिघातकी संभावना नहीं पाई जाती है । सम्यग्मिथ्यादृष्टियों में उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? मोहनीय कर्मकी उत्कृष्ट स्थितिकी सत्तावाला जो कोई एक जीव उत्कृष्ट स्थितिखण्डका घात करता है उसके उत्कृष्ट हानि होती है।
इस प्रकार उत्कृष्ट स्वामित्व समाप्त हुआ ।
२३. अब जघन्य स्वामित्वका प्रकरण है । उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका हैनिर्देश और देशनिर्देश । उनमें से ओघकी अपेक्षा जघन्य वृद्धि किसके होती है ? जो एक समय कम उत्कृष्ट स्थितिको बांधता हुआ उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त होकर उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करता है ऐसे किसी एक जीवके जघन्य वृद्धि होती है । जघन्य हानि किसके होती है ? अधःस्थिति यसे किसी एक जीवके जघन्य हानि होती है। तथा इनमें से किसी एकमें अवस्थान होता है । इसी प्रकार सातों पृथिवियोंके नारकी, सभी तिर्यंच, सभी मनुष्य, सामान्य देव, भवनवासियोंसे लेकर सहस्रार स्वर्ग तक के देव, सभी एकेन्द्रिय, सभी विकलेन्द्रिय, सभी पंचेन्द्रिय, छहों कायवाले, पांचों मनोयोगी, पांचों वचनयोगी, काययोगी, औदारिककाययोगी, औदारिक मिश्रकाययोगी, वैक्रियिककाययोगी, वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, कार्मरणकाययोगी, तीनों वेदवाले, क्रोधादि चारों कषायवाले, तीनों अज्ञानी, असंयत, चतुदर्शनवाले, अचक्षुदर्शनवाले, कृष्णादि पांच लेश्यावाले, भव्य, अभव्य, मिध्यादृष्टि, संज्ञी, असंज्ञी, आहारक और अनाहारक जीवोंके जानना चाहिये ।
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