Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२] द्विदिविहत्तीए भुजगारे पोसणाणुगमो
११६ ६ २०८. सव्वपंचिं० तिरिक्ख० भुज० अप्पद० अवहि० के० खे० पो० ? लोग० असंखे० भागो सव्वलोगो वा । एवं मणुस्स-सव्वविगलिंदिय-पंचिंदिय अपजबादरपुढवि० (पज्ज०)-बादराउ०पज्जा-बादरतेउ०पज्ज०-बादरवाउ०पज्ज०-बादरवणप्फदिपचेय०पज्ज०-तसअपज्ज० । णवरि बादरवाउपज्ज. लोग० संखे० भागो सव्वलोगो वा।
$ २०६. देव० भुज० अप्प० अवहि० लोग० असंखे० भागो अहणव चोदसभागा वा देसूणा । एवं सोहम्मीसाणेसु । भवण० वाण. जोदिसि० एवं चेव । णवरि अद्ध ह अह णव चोदसभागा वा देसणा । सणक्कुमारादि जाव सहस्सारेत्ति के. खे० पो ? लोग० असंखे०भागो अहचोदस भागा वा देणा । आणदादि जाप अच्चुदेत्ति के० खेत्तं पा० ? लोग० असंखे०भागो छ चोदसभागा देसूणा ।।
२१०. पंचिंदिय-पंचिं०पज-तस-तसपज्ज. भुज० अप्पद० अवहि के. खे० पो० ? लोग असंखे० भागो अह चोदसभागा देसणा सबलोगो वा । एवं पंच भाग क्षेत्रका और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे क्रमसे कुछ कम एक, कुछ कम दो, कुछ कम तीन, कुछ कम चार, कुछ कम पाँच और कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है ।
६२०८. सभी पंचेन्द्रिय तिर्यंचोंमें भुजगार, अल्पतर और अवस्थित स्थिति विभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग और सर्वलोक प्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। इसी प्रकार सभी मनुष्य, सभी विकलेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय अपर्याप्त, बादर पृथिवीकायिक पर्याप्त, बादर जलकायिक पर्याप्त, बादर अग्निकायिक पर्याप्त, बादर वायुकायिक
वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर पर्याप्त और उस अपर्याप्त जीवोंके जानना चाहिये। इतनी विशेषता है कि बादर वायुकायिक पर्याप्त जीवोंने लोकके संख्यातवें भाग और सर्वलोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है।
२०६. देवोंमें भुजगार, अल्पतर और अवस्थित स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका तथा वसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ और नौ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। इसी प्रकार सौधर्म और ऐशान स्वर्गके देवोंके जानना चाहिये। भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवोंके भी इसी प्रकार जानना चाहिये। तनी विशेषता है कि इनके अतीतकालीन स्पर्श त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम साढ़े तीन, कुछ कम आठ और कुछ कम नौ भागप्रमाण होता है । सानत्कुमारसे लेकर सहस्रार स्वर्ग तकके देवोंने कितने क्षेत्रका मर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है ? अानतकल्पसे लेकर अच्युतकल्प तकके देवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम छह भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है।
२१०. पंचेन्द्रिय, पंचेन्द्रियपर्याप्त, त्रस और त्रस पर्याप्त जीवोंमें भुजगार, अल्पतर और अवस्थित स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका, बसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भाग क्षेत्रका और सर्व लोक क्षेत्रका स्पर्श
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