Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
View full book text
________________
६४
जयधवलासहिदे कसायपाहुडे . [द्विदिविहत्ती ३. .... संजदासंजद-चक्खु०-ओहिदंस०-तिण्णिले०-सम्मादि-खइय०-वेदय-उवसम०-सासण. सम्मामि०-सण्णि त्ति । मणुसपज्ज०-मणुसिणी०सव्वत्थोवा उक्क । अणुक्क० संखेजगुणा । एवं सव्वह-आहार-आहारमिस्स०-अवगद०-अकसाय०--मणपज्जासंजद-सामाइय-छेदो०-परिहार०-मुहुमसांपरा-जहाक्खादसंजदे त्ति ।
एवमुक्कस्सअप्पाबहुगाणुगमो समत्तो । १६६. जहण्णए पयदं । दुविहो जिद्द सो-ओघेण आदेसेण य । तत्थ ओघेण जह• अजह० उक्कस्स०भंगो । एवं कायजोगि-ओरालि०-णवंसु०-चत्तारिकसा०अचक्खु०-भवसि०-अाहारि त्ति ।
१६७. आदेसेण रइएसु मोह० जह• अज० उक्कस्साणुक्कस्सभंगो। एवं सत्तसु पुढवीसु सव्वतिरिक्ख-मणुस-मणुसअपज०-देव-भवणादि जाव अवराइद-सव्वएइंदिय-सव्वविगलिंदिय-सव्यपंचिंदिय-छकाय०-पंचमण-पंचवचि०-ओरालियमिस्स०वेउव्विय०-वेउव्वियमिस्स -कम्मइय--इत्थि०-पुरिस-मदि-सुदअण्णाण-विहंगआभिणि-सुद--ओहि०--संजदासंजद-असंजद--चक्खु०--ओहिदंस--पंचले०--सुक्क०-- वैक्रियिकमिश्रकाययोगी,स्त्रीवेदी,पुरुषवेदी,विभंगज्ञानी, आभिनियोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी,अवधिज्ञानी, संयतासंयत, चक्षुदर्शनी,अवधिदर्शनी,पीत आदि तीन लेश्यावाले,सम्यग्दृष्टि,क्षायिकसन्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि, उपशमसम्यग्दृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और संज्ञी जीवोंके जानना चाहिये। मनुष्यपर्याप्त ओर मनुष्यनियों में उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इसी प्रकार सर्वार्थसिद्धिके देव, आहारककाययोगी, आहारकमिश्रकाययोगी, अपगतवेदी, अकषायी, मनःपयेयज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत, परिहारविशुद्धिसंयत, सूक्ष्मसांपरायिकसंयत और यथाख्यातसंयत जीवोंके जानना चाहिए।
- इस प्रकार उत्कृष्ट अल्पबहुत्वानुगम समाप्त हुआ। ६१६६. अब जघन्य अल्पबहुत्वानुगमका प्रकरण है । उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश। उनमेंसे ओघकी अपेक्षा जघन्य और अजघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका अल्पबहुत्व उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंके अल्पबहुत्वके समान है। इसी प्रकार काययोगी, औदारिककाययोगी, नपुंसकवेदी, क्रोधादि चारों कषायवाले, अचक्षुदर्शनी, भव्य और आहारक जीवोंके जानना चाहिये ।
६ १६७. आदेशनिर्देशकी अपेक्षा नारकियोंमें मोहनीयकी जघन्य और अजघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका अल्पबहुत्व उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंके अल्पबहुत्वके समान है। इसी प्रकार सातों पृथिवियोंके नारकी, सभी तिथंच, मनुष्य, मनुष्य अपर्याप्त, सामान्य देव, भवनवासियोंसे लेकर अपराजित स्वर्ग तकके देव, सभी एकेन्द्रिय, सभी विकलेन्द्रिय, सभी पंचेन्द्रिय, छहों कायवाले, पांचों मनोयोगी, पांचों वचनयोगी,औदारिक मिश्रकाययोगी, वैक्रियिककाययोगी, वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, कार्मण काययोगी, स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, विभंगज्ञानी, आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी,अवधिज्ञानी, संयतासंयत,असंयत,चक्षुदर्शनी, अवधि
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org