Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२ ]
हिदिविहत्तीए भुजगारे समुक्कित्तण। अभव०-सम्मादि०-खइय०-वेदय०-उवसम०-सासण-सम्मामि मिच्छादि-सण्णिअसण्णि-अणाहारि ति।
१६८. मणुसपज्ज०-मणुसिणी. सव्वत्थोवा जह० । अजह० संखेज्जगुणा । एवं सबढ०-आहार-आहारमिस्स०-अवगद०-अकसा०-मणपज्ज-संजद-सामाइयछेदो०-परिहार०-मुहुमसांपराय०-जहाक्खादसंजदे त्ति ।
__एवमप्पाबहुगाणुगमो समत्तो।
एवं चउवीस-अणियोगद्दाराणि समत्ताणि । ६१६६. भुजगारे तत्थ इमाणि तेरस अणियोगद्दाराणि-समुक्कित्तणादि जाव अप्पाबहुए त्ति । समुक्त्तिणाणुगमेण दुविहो णिसो-ओघेण आदेसेण य । तत्थ ओघेण मोह० अत्थि भुज-अप्पद०-अवहिदविहत्तिया जीवा । एवं सत्तसु पुढवीसु सव्वतिरिक्ख-सव्वमणुस्स-देव-भवणादि जाव सहस्सार०-सव्वएइदिय-सव्वविगलिंदियसव्वपंचिंदिय-पंचकाय-सव्वतस-पंचमण-पंचवचि०-कायजोगि-अोरालि०-ओरालियमिस्स-वेउव्विय०-वेउव्वियमिस्स-कम्मइय-तिण्णिवेद-चत्तारिकसा०-मदि-सुदअण्णाणविहंग०-असंजद०-चक्खु-अचक्ख०-पंचलेस्सा०-भवसिद्धि०-अभवसिद्धि-मिच्छादि०दर्शनी,कृष्ण आदि पांच लेश्यावाले, शुक्ललेश्यावाले, अभव्य, सम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि, उपशमसम्यग्दृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि, मिथ्यादृष्टि, संज्ञी, असंज्ञी और अनाहारक जीवोंके जानना चाहिये।
६१६८. मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यनियोंमें जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे अजघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इसी प्रकार सर्वार्थसिद्धिके देव, आहारककाययोगी, आहारकमिश्रकाययोगी, अपगतवेदी, अकषायी, मनःपर्ययज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत, परिहारविशुद्धिसंयत, सूक्ष्मसांपरायिकसंयत और यथाख्यातसंयत जीवोंके जानना चाहिये।
इस प्रकार अल्पबहुत्वानुगम समाप्त हुआ।
इस प्रकार चौबीस अनुयोगद्वार समाप्त हुए। ६ १६६. भुजगार स्थितिविभक्तिके कथनमें समुत्कीर्तनासे लेकर अल्पबहुत्वतक तेरह अनुयोगद्वार हैं। उनमें से समुत्कीर्तनानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश । उनमेंसे ओघकी अपेक्षा मोहनीयकी भुजगार, अल्पतर और अवस्थित स्थितिविभक्तिवाले जीव हैं। इसी प्रकार सातों पृथिवियोंके नारकी, सभी तिर्यंच, सभी मनुष्य, सामान्य देव, भवनवासियोंसे लेकर सहस्रार कल्पतकके देव, सभी एकेन्द्रिय, सभी विकलेन्द्रिय, सभी पंचेन्द्रिय, पांचों स्थावरकाय, सभी त्रस, पांचों मनोयोगी, पांचों वचनयोगी, काययोगी, औदारिककाययोगी, औदारिकमिश्रकाययोगी वैक्रियिककाययोगी, वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी, तीनों वेदवाले, क्रोधादि चारों कषायवाले, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, विभंगज्ञानी, असंयत, चक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी, कृष्णादि पांच लेश्यावाले, भव्य, अभव्य, मिथ्यादृष्टि, संज्ञी, असंज्ञी,
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