Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे . [द्विदिविहत्ती ३ १२२. पंचिंदियतिरिक्वतियम्मि उक्क तिरिक्खोघं । अणुक्क० के० खे० पो० ? लोग० असंखेभागो सव्वलोगो वा । पंचिंदियतिरिक्खअपज मोह उक्क० लोगों असंखे भागो। अणुक्क० लोग० असंखे०भागो सव्वलोगो वा । एवं मणुसअपज्ज० । क्षेत्रका स्पर्श किया है ? सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। इसी प्रकार औदारिककाययोगी और नपुंसकवेदी जीवोंके कहना चाहिये।
विशेषार्थ–तियंचोंमें मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थिति संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त तिर्यंचोंके ही सम्भव है और इनका वर्तमान निवास लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण होता है, अतः तियचोंमें मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिवाले जीवोंका वर्तमान स्पर्श लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण बतलाया है । तथा मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिवाले तिर्यंचोंका अतीत कालीन स्पर्श कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण बतलानेका कारण यह है कि ऐसे तियचोंने मारणान्तिक समुद्घात द्वारा नीचे कुछ कम छह राजुप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। क्योंकि जिन तिर्यंचोंके मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध हो रहा है उनका संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त तियंच, मनुष्य और नारकियोंमें ही मारणान्तिक समुद्धात करना सम्भव है । तथा मोहनीयकी अनुत्कृष्ट स्थिति सब जातिके तिर्यंचोंके सम्भव है और वे सब लोकमें पाये जाते हैं अतः मोहनीयकी अनुत्कृष्ट स्थितिवाले तिर्यंचोंका सब लोक स्पर्श बतलाया है । औदारिककाययोग और नपुंसकवेदमें भी यह व्यवस्था बन जाती है, अतः इनके स्पर्शको सामान्य तिर्यंचोंके समान बतलाया है।
१२२. पंचेन्द्रिय तिर्यंच, पंचेन्द्रिय तिर्यंच पर्याप्त और पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिमती इन तीन प्रकारके तिर्यञ्चोंमें उत्कृष्ट स्थिति विभक्तिवाले जीवोंका स्पर्शन सामान्य तिर्यंचोंके समान है। तथा उक्त तीन प्रकारके तिर्यंचोंमें अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका और सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। पंचेन्द्रियतियच लब्ब्यपर्याप्तकोंमें मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है। तथा अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका और सर्व लोक क्षेत्रका स्पर्श किया है । इसी प्रकार लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्यों के जानना चाहिये।
विशेषार्थ-सामान्य तिर्यंचोंमें जो उत्कृष्ट स्थितिवाले जीवों का स्पर्श कहा है वह पंचेन्द्रिय तिर्यंचत्रिक की मुख्यतासे ही कहा है अतः इन तीन प्रकारके तिर्यंचोंमें उत्कृष्ट स्थितिवाले जीवोंका स्पर्श सामान्य तियचोंके समान बतलाया है। किन्तु उक्त तीन प्रकारके तियचोंमें अनुत्कृष्ट स्थितिवाले जीवोंके स्पर्शमें कुछ विशेषता है। बात यह है कि इन तीन प्रकारके तिर्यंचोंका वर्तमान स्पर्श लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है और अतीतकालीन स्पर्श सब लोक है अतः इनमें अनुत्कृष्ट स्थितिवालोंका स्पर्श उक्त प्रमाण बतलाया है। जो तिथंच या मनुष्य मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करके और स्थितिघात किये बिना पंचेन्द्रिय तिर्यंच लब्ध्यपर्याप्तकोंमें उत्पन्न होते हैं उन्हींके पहले समयमें मोहनीयकी आदेश उत्कृष्ट स्थिति पाई जाती है। किन्तु इनके अतीतकालीन और वर्तमानकालीन क्षेत्रका विचार करते हैं तो वह लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण ही प्राप्त होता है, अतः यहां मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिवाले लब्ध्यपर्याप्तक तिर्यंचों का दोनों प्रकारका स्पर्श लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। वैसे पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तक तिर्यंचोंका वर्तमानकालीन स्पर्श लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीत कालीन स्पश सब लोक बतलाया है जो इनके अनुत्कृष्ट स्थितिके रहते हुए सम्भव है, अतः मोहनीयकी अनुत्कृष्ट स्थितिवाले पंचेन्द्रिय तिर्यंच लब्ध्यपर्याप्त कोंके दोनों प्रकारका स्पर्श
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