Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२ ] हिदिविहत्तीए फोसणे
६६ $ १२०. आदेसेण णिरय• मोह० उक्क० अणुक्क० के० खेचं पोसिद ? लोगस्स असंखे भागो छचोद्दस भागा वा देसूणा । पढमाए खेतभंगो । विदियादि जाव सत्तमि त्ति मोह० उक्क० अणुक्क० के० खेनं पोसिदं ? लोग० असंखे भागो एक्क-बे-तिण्णि-चत्तारि-पंच-छचोद्दस भागा देसूणा ।
६१२१. तिरिक्ख० मोह० उक० के० खे० पो० ? लोग. असंखे०भागो छ चोदसभागा वा देसूणा । अणुक्क० के० खेचं पोसिदं ? सव्वलोगो । एवमोरालि०णवूस० वत्तव्यं । स्पर्श बतलाया है वह वर्तमान कालकी मुख्यतासे बतलाया है, क्योंकि मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थिति सातों नरकोंके नारकी, संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त तिर्यंच, पर्याप्त मनुष्य व बारहवें स्वर्ग तकके देवों के ही सम्भव है । पर इन सबका वर्तमान क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण ही है । वसनालीके चौदह भागोंमेंसे जो कुछ कम आठ और कुछ कम तेरह भाग प्रमाण स्पर्श बतलाया है वह अतीत कालकी अपेक्षासे बतलाया है क्योंकि विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय और वैक्रियिक पदसे परिणत हुए मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिवाले जीवोंने कुछ कम आठ भाग स्पर्श किया है और मारणान्तिक समुद्धातसे परिणत हुए मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिवाले जीवोंने कुछ कम तेरह भाग स्पर्श किया है । मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिके रहते हुए तैजस, आहारक और उपपाद ये तीन पद सम्भव नहीं। हां स्वस्थानस्वस्थानपद अवश्य होता है सो इसकी अपेक्षा स्पर्श लोके असंख्यातवें भागप्रमाण जानना चाहिये । तथा मोहनीयकी अनुत्कृष्ट स्थितिवालोंका क्षेत्र जब कि सब लोक है तब स्पर्श तो सब लोक होगा ही। कुछ मार्गणाएं भी ऐसी हैं जिनमें यह ओघ प्ररूपणा अविकल बन जाती है अतः उनके कथनको ओघके समान कहा । जैसे काययोगी आदि ।
$ १२०. आदेशनिर्देशकी अपेक्षा नरकगतिमें नारकियोंमें मोहनीयकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम छह भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है। पहली पृथिवीमें स्पर्श क्षेत्रके समान है। तथा दूसरी पृथिवीसे लेकर सातवीं पृथिवी तक प्रत्येक पृथिवीमें मोहनीय की उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका तथा त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम एक, दो, तीन, चार, पांच और छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है।
विशेषार्थ-सामान्यसे नारकियोंका वर्तमान कालीन स्पर्श लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है और अतीत कालीन स्पर्श त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम छह भाग प्रमाण बतलाया है। इसीसे यहां पर मोहनीयकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिवाले नारकियोंके दोनों प्रकारका स्पर्श उक्तप्रमाण कहा । विशेषकी अपेक्षा जिस नरकका अतीत कालीन जितना स्पर्श बतलाया है उतना ही जान लेना चाहिये जो मूल में बतलाया ही है। यहां हमने पदविशेषोंका उल्लेख नहीं किया है सो यह सब विशेषता जीवट्ठाणसे जान लेनी चाहिये ।
१२१. तिथंच गतिमें तिर्यंचोंमें मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। तथा अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने कितने
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