Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे . [द्विदिविहत्ती ३ १३०. संजदासजद-संजद० उक्क० खेत्तभंगो । अणुक्क० लोग० असंखे०भागो छचोइस भागा वा देमूणा । एवं सुक्कले। तेउले. सोहम्मभंगो। पम्म० सहस्सारभंगो।
१३१. किण्ह०-णील०-काउ० उक्क० के० खे० पो० १ लोग० असंखे० भागो छ-चदु-बे-चोदसभागा देसूणा । अणु० सव्वलो० ।
१३२ खइय० मोह. उक्क० खेत्तभंगो। अणुक्क० के० खे० पो ? लोग असंखे भागो अहचोइस भागा वा देसूणा।
$ १३३. सासण० मोह० उक्क लोग० असंखे भागो अहचोइस भागा वा देसूणा। अणुक्क० अह-बारहचोदस भागा वा देसूणा । असण्णि. एइंदियभंगो । पदोंकी अपेक्षा कहा है और दूसरा मारणान्तिक समुद्घातकी अपेक्षा कहा है। कार्मणकाययोगियोंका स्पर्श यद्यपि सब लोक है किन्तु यहां उत्कृष्ट स्थितिवालोंका वर्तमानकालीन स्पर्श लोकके असंख्यातवें भाग है और अतीतकालीन स्पर्श कुछ कम तेरह बटे चौदह राजु है, क्योंकि मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थिति संज्ञी पर्याप्तके ही होती है। अब यदि ऐसे जीव दूसरे समयमें मरकर कार्मणकाययोगी होते हैं तो उनका वर्तमान स्पर्श लोकके असंख्यातवें भागसे अधिक नहीं प्राप्त होता, इसलिये यहां वर्तमान स्पर्श लोकके असंख्यातवें भाग कहा। तथा उत्कृष्ट स्थितिवाले कार्मणकाययोगियोंने अतीत कालमें नीचे कुछ कम छह राजु और ऊपर कुछ कम सात राजु क्षेत्रका स्पर्श किया है अतः इनका अतीतकालीन स्पर्श कुछ कम तेरह बटे चौदह राज कहा। आभिनिबोधिकज्ञानादि मार्गणाओंमें उस मार्गणाका जो स्पर्श है वही यहां उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिकी अपेक्षा जानना चाहिये।
१३०. संयतासंयत जीवोंमें मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका स्पर्श क्षेत्रके समान है। तथा अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागोंमें से कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। इसी प्रकार शुक्ललेश्यावाले जीवोंका स्पर्श है। पीतलेश्यावाले जीवोंका स्पर्श सौधर्मके देवोंके समान है। तथा पद्मलेश्यावाले जीवोंका स्पर्श सहस्रार स्वर्गके देवोंके समान है।
8 १३१. कृष्ण, नील और कापोत लेश्यावालोंमें उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका तथा त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम छह, चार और दा भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। तथा अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने सवलोक प्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है।
१३२, क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवोंमें मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका स्पर्श क्षेत्रके समान है। तथा अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जावोंने कितने क्षेत्र का स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग और बसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है।
६१३३. सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंमें मोहनी यकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। तथा अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ
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