Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
View full book text
________________
गा • २२]
द्विदिविहत्तीए भागाभागो पत्तेय-पजतापज्जत्त—सव्वतस-पंचमण-पंचवचि०-वेउव्विय०-वेउव्वियमिस्स०इत्थि०-पुरिस०-विहंग-आभिणि-सुद०-ओहि०-संजदासंजद-चक्खु०-ओहिदंस०तिण्णिले०-सम्मादि०-खइय०-वेदय०-उवसम०-सासण-सम्मामि०-सण्णि त्ति ।
१००. मणुसपज्ज-मणुसि० मोह० उक्क० सव्वजी० के० भागो ? संखे०भागो । अणुक० सव्वजी० के० ? संखेज्जा भागा। एवं सव्वह०-आहार-आहारमिस्स०-अवगद-अकसाय-मणपज्ज०-संजद०-सामाइय-छेदो०-परिहार०-मुहमसांप०जहाक्खाद०।
एवमुक्कस्सभागाभागो समत्तो । १०१. जहण्णए पयदं । दुविहो णिद्देसो-अोघेण आदेसेण य । तत्थ ओघेण बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर पर्याप्त,बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर अपर्याप्त,सभी त्रस, पांचों मनोयोगी, पांचों वचनयोगी,वैक्रियिककाययोगी, वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, विभंगज्ञानी, आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, संयतासंयत, चक्षुदर्शनवाले, अवधि दर्शनवाले, पीत आदि तीन लेश्यावाले, सम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि, उपशमसम्यग्दृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और संज्ञी जीवोंके कहना चाहिये ।
१००. मनुष्यपर्याप्त और मनुष्यनियोंमें मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीव सब जीवों के कितने भाग हैं ? संख्यातवें भाग हैं । अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीव सब जीवोंके कितने भाग हैं ? संख्यात बहुभाग हैं। इसी प्रकार सर्वार्थसिद्धिके देव, आहारककाययोगी, आहारकमिश्रकाययोगी, अपगतवेदवाले, अकषायी, मनःपर्ययज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत, परिहारविशुद्धिसंयत, सूक्ष्मसांपरायिकसंयत और यथाख्यातसंयत जीवोंके जानना चाहिये।
विशेषार्थ भागाभागमें कौन किसके कितने भागप्रमाण हैं इसका विचार किया जाता है । प्रकृतमें सामान्यरूपसे और विशेषरूपसे उत्कृष्ट स्थिति और अनुत्कृष्ट स्थितिवाले जीब किसके कितने भाग हैं यह बतलाया गया है। लोकमें जितने उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिवाले जीव हैं उनमें अनन्तवें भागप्रमाण उत्कृष्ट स्थितिवाले हैं और अनन्त बहुभाग अनुत्कृष्ट स्थितिवाले हैं । मार्गणाओंकी अपेक्षा उनकी नरूपणा तीन प्रकारसे हो जाती है। कुछ मार्गणाओंमें उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिवालोंकी प्ररूपणा ओघके समान है। कुछ मार्गणाओंमें असंख्यातवें भागप्रमाण उत्कृष्ट स्थितिवाले और असंख्यात बहुभाग अनुत्कृष्ट स्थितिवाले हैं। तथा कुछ मार्गणाओंमें संख्यातवें भागप्रमाण जीव उत्कृष्ट स्थितिवाले ओर संख्यात बहुभागप्रमाण जीव अनुत्कृष्ट स्थितिवाले हैं। इन सब मार्गणाआके नाम मूलमं गिनाये ही है। इसी प्रकार जघन्य और अजघन्य स्थितिवाले जीवोंके भागाभागका खुलासा समझना चाहिये।
इस प्रकार उत्कृष्ट भागाभाग समाप्त हुआ। $ १०१. अब जघन्य भागाभागका प्रकरण है। उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका हैओघनिर्देश और और आदेशनिर्देश। उनमेंसे ओघनिर्देशकी अपेक्षा मोहनीयकी जघन्य स्थिति.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org