Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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६० .
जयधवलासहिदे कसायपाहुडे . [द्विदिविहत्ती ३ मोह० ज० सव्वजीवा० केवडि• ? अणंतिमभागो। अज० सव्वजी० के० १ अणंता भागा। एवं कायजोगि०-ओरालि०-णवूस०-चत्तारिक०-अचक्खु०-भवसिद्धिय-आहारि त्ति।
६१०२. आदेसेण णेरइएमु मोह० ज० सव्वजी० के० ? असंखे०भागो । अज० सव्वजी० के० ? असंखेज्जा भागा। एवं सत्तसु पुढवीसु सव्वतिरिक्खमणुस- मणुसअपज्ज.-देव०-भवणादि जाव अवराइद०-सव्वएइंदिय-सव्वविगलिंदियसव्वपंचिंदिय-छकाय-पंचमण०-पंचवचि०-ओरालियमिस्स-वेउविय०-वेउ०मिस्स०कम्मइय०-इत्थिल-पुरिस-मदि-सुदअण्णाण-विहंग०-आभिणि-सुद०-ओहि०-संजदा०संजद०-असंजद०-चक्षु०-ओहिदंस०-छलेस्सा-अभव-सम्मादि०-खाय०-वेदय०उवसम०-सासण-सम्मामि०-मिच्छादि०-सण्णि-असण्णि:-अणाहारि त्ति ।
१०३. मणुसपज०-मणुसिणी० मोह० जह० सव्वजी० के० ? संखे भागो। अज. सव्वजी० के० ? संखेज्जा भागा। एवं सव्वह० आहार-आहारमिस्स०अवगद०-अकसा०-मणपज्ज०-संजद-सामाइय-छेदो०-परिहार०-सुहुमसांप०-जहाक्रवाद।
एवं भागाभागाणुगमो समत्तो । विभक्तिवाले जीव सब जीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं। मोहनीयकी अजघन्य स्थितिवाले जीव सब जीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्त बहुभाग हैं। इसी प्रकार काययोगी, औदारिक काययोगी, नपुंसकवेदवाले, क्रोधादि चारों कषायवाले, अचक्षुदर्शनवाले, भव्य और आहारक जीवों के कहना चाहिये।
६ १०२. आदेशनिर्देशकी अपेक्षा नारकियोंमें मोहनीयकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीव विवक्षित जघन्य और अजघन्य स्थितिवाले नारकी जीवोंके कितने भाग हैं ? असंख्यातवें भाग हैं। तथा अजघन्य स्थितिविभक्तिवाले नारकी जीव कितने भाग हैं ? असंख्यात बहुभाग हैं। इसी प्रकार सातों पृथिवियोंके नारकी, सभी तियेंच, सामान्य मनुष्य, लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्य, सामान्य देव, भवनवासियोंसे लेकर अपराजित तकके देव, सभी एकेन्द्रिय, सभी विकलेन्द्रिय, सभी पंचेन्द्रिय, छहों कायवाले, पांचों मनोयोगी, पांचों वचनयोगी, औदारिक मिश्रकाययोगी, वैक्रियिककाययोगी,वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी, स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, मत्यज्ञानी,श्रुताज्ञानी, विभंगज्ञानी,आभिनिबोधिकज्ञानी,श्रुतज्ञानी,अवधिज्ञानी,संयतासंयत,असंयत, चक्षुदर्शनवाले, अवधिदर्शनवाले, छहों लेश्यावाले, अभव्य, सम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि,वेदकसम्यग्दृष्टि, उपशमसम्यग्दृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि,सम्यग्मिथ्यादृष्टि, मिथ्यादृष्टि,संज्ञी, असंज्ञी और अनाहारक जीवोंके जानना चाहिये।
६ १०३. मनुष्यपर्याप्त और मनुष्यनियोंमें मोहनीयकी जघन्य स्थिति भक्तिवाले जीव जघन्य और अजघन्य स्थितिवाले पर्याप्त मनुष्य और मनुष्यनियोंके कितने भाग हैं ? संख्यातवें भाग हैं। तथा अजघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीव कितने भाग हैं ? संख्यात बहुभाग हैं। इसी प्रकार सर्वार्थसिद्धिके देव, आहारककाययोगी, आहारकमिश्रकाययोगी, अपगतवेदवाले. अकषायी,
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