Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे . [द्विदिविहत्ती ३ एइंदियभंगो । पंचिंदियअप०-तस अप० पंचिंतिरिक्खअपजत्तभंगो ।
७६. पंचमण-पंचवचि० मोह० जहण्णहिदी जहएणुक्क० एयसमश्रो । अजहण्ण० ज० एगस०, उक्क० अंतोमु० । एवमवगद० -अकसा-मुहुमसांपरांय-जहाक्खाद० वत्तव्वं ।
७७. ओरालिय० मोह० जहण्णहिदी जहण्णुक्क० एगसमओ। अजहण्ण० ज० एगसमओ, उक्क० वावीस वाससहस्साणि देसूणाणि । वेउव्विय० मणजोगिभंगो । वेउव्वियमिस्स० मोह० जहण्णहिदी जहण्णुक्क० एगसमओ । अजहण्ण० जहएणुक्क० अंतोमुहत्तं । कायजोगि० मोह० जहण्णहिदी० जहएणुक्क० एगसमओ । अजहण्ण० जह० एगसमत्रो, जहण्णविहत्तियदुचरिमसमए कायजोगेण परिणदम्मि तदुवलंभादो । उक्क० अणंतकोलमसंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा । एवं णवुस० वत्तव्यं । आहार०मणजोगिभंगो। आहारमिस्स० वेउव्वियमिस्सभंगो। कम्मइय० मोह० जहण्णहिदी जहण्णुक्क० एगसमओ । अज० जह० एनसमो, उक्क० तिण्णि समया। निगोद जीवोंके एकेन्द्रियोंके समान है। पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तक और त्रस लब्ध्यपर्याप्तक जीवोंके पंचेन्द्रियतियश्च लब्ध्यपर्याप्तकोंके समान है।
६ ७६. पाँचों मनोयोगी और पाँचों वचनयोगी जीवों के मोहनीयकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट सत्त्वकाल एक समय है। तथा अजघन्य स्थितिका जघन्य सत्त्वकाल एक समय और उत्कृष्ट सत्त्वकाल अन्मुहूर्त है। इसी प्रकार अपगतवेदी, अकषायी, सूक्ष्मसांपरायिकसंयत और यथाख्यातसंयत जीवोंके कहना चाहिए
७७. औदारिक काययोगी जीवोंमें मोहनीयकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट सत्त्वकाल एक समय है। तथा अजघन्य स्थितिका जघन्य सत्त्वकाल एक समय और उत्कृष्ट सत्त्वकाल कुछ कम बाइस हजार वर्ष है। क्रियिककाययोगी जीवोंके मनोयोगी जीवोंके समान जानना चाहिये। वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीवोंके मोहनीयकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट सत्त्वकाल एक समय है । तथा अजघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट सत्त्वकाल अन्तर्मुहूर्त है। काययोगी जीवोंके मोहनीयकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट सत्त्वकाल एक समय है। तथा अजघन्य स्थितिका जघन्य सत्त्वकाल एक समय है। जो जघन्य स्थिति विभक्तिके द्विचरम समयमें काययोगके होनेपर पाया जाता है। तथा उत्कृष्ट सत्त्वकाल अनन्त कालप्रमाण है जिसका प्रमाण असंख्यात पुगदल परिवर्तन है। इसी प्रकार नपुंसकवेदी जीवोंके कहना चाहिये । आहारक काययोगी जीवोंके मनोयोगी जीवोंके समान जानना चाहिये । आहारकमिश्रकाययोगी जीवोंके वैक्रियिकमिश्र काययोगी जीवोंके समान जानना चाहिये। तथा कार्मणकाययोगी जीवोंके मोहनीयकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट सत्त्वकाल एक समय है। तथा अजघन्य स्थितिका जघन्य सत्त्वकाल एक समय और उत्कृष्ट सत्त्वकाल तीन समय है।
विशेषार्थ-पांचों मनोयोगी और पांचों वचनयोगी जीवोंके दशवें गुणस्थानके अन्त में जघन्य स्थिति प्राप्त होती है, अतः इनके जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्टकाल एक समय
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