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भाषा समिति के पालन करने वाला विना विचार किये कभी भी न बोले तथा जिस शब्द के बोलने में पाप लगता होवे और दसग दुःख पानसा होवे इस प्रकार की भाषा मुनि न बोले यद्यपि भाषा सत्य भी है किन्तु उस के बोलने से यदि दसरा दुःख मानता होवे तो वह भाषा मुख से न निकालनी चाहिये जैसे काणे को काणा काना इत्यादि भाषाएं न पालनी चाहिये । . क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष, हास्प, भय, मोह, इन के वश होकर वाणी न वोलनी चाहिये कारण कि जब भात्मा पूर्वोक्त कारणों के बश होकर पोलता है तब उस का सत्य व्रत पलना कठिन हो जाता है। इस लिये सत्यव्रत की रक्षा के लिये भाषा समिति का पालन अवश्य ही करना चाहिये । निस भारमा के माषा वोवने का विवेक होता है वह क्लेशों का नाश कर देता है जब बोलने का विवेक हो गया तो फिर
एषणा समिति । भोजन का विवेक भी अवश्य होना चाहिए ! जैसे कि: मुनि निर्दोष भिना दोरा जीवन व्यतीत करे शास्त्रों में