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.( ४१ ) रात्रि भोजन परित्याग। फिर जीव रक्षा के लिये वा संताप वृत्ति के लिये रात्रि भोजन कदापि न करे रात्रि दोजन विचार शोलों के लिये अयोग्य वतलाया गया है गात्रि भोजन करने में
हिंसा व्रत पूर्ण प्रकार से नहीं पन्त ममता श्यतः दया 'वास्ते निश भोजन त्यागना चाहिये तथा मुनि अन्न श्री 'जाति, पानी की जाति, मिठाई यादि की जाति, चूर्ण
आदि जाति, इन चारों अपारों में से कोई भी पाहार 'न करें।
इना ही नहीं किन्तु सूर्य की एक कता दब जाने से भी सात्रि भोजन के त्याग में दोप लग जाता है यदि रात्रि भोजन परित्याग वान्ते जीव को गत्रि . में पुख में पानी भी आजावे फिर बह--उस पानी को वाहिर न निकाले फिर भी उसको दोष लग जाता है इरा लि शनि भोजन में विवेक भली मीर से रखना चाहिये ।
" मिनु रात्रि भोजन भाप न करें, औरों से न कराये, स्रो रात्रि में भोजन करते हैं उन की अनुमोदनी