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(३६) सर्व अधर्मों का मूल मैथुन ही है इसका त्याग करना शूरवीर भोत्माओं का ही काप है इस से हर एक प्रकार की शक्तियें ( लब्धियें ) प्राप्त हो सकती है यह एक अमून्य रल है। ।
सब नियमों का सारभूत है ब्रह्मचारी को देव गण भी नमस्कार करते हैं जगत् में यह महाव्रत पूजनीय पाना जाता है।
अतएव ! मन वाणी और काय से इस को धारण करना चाहिये क्यों कि-चारित्र धर्म का यह महानत पाण भूत है निरोगता देने वाला है चित्त की स्थिरता का मुख्य कारण है इस के धारण करने से हर एक गुण धारण किये जा सकते हैं। ___इस लिये ! मुनियों के लिये यह चतुर्थ महाव्रत धारण करना बावश्यकीय बतलाया गया है सो मुनि जन-माप-तो मैथुन सेवन करें नहीं औरों को इस क्रिया का उपदेश न करें।
जो मैथुन क्रिया करने वाले जीव हैं उन के मैथुन की भनुमोदना न करे मनुष्य-देव-पशु-इन तीनों के